प्रजाति शब्द काफी प्रचलित है। इसका प्रयोग विभिन्न अर्थों में किया जाता है। इसका प्रयोग कुछ लोग एक क्षेत्रीय समूह के लिए करते हैं जो एक विशेष स्थान पर रहता है। जैसे- अमरीकी प्रजाति, स्वेडिश प्रजाति आदि। इसका अर्थ राष्ट्र, भाषा-समूह, वर्ण समूह या इसी तरह कुछ भी हो सकता है। परन्तु यह अर्थ भ्रामक है। इसकी वैज्ञानिक अवधारणा इन प्रचलित अर्थों से भिन्न है।
परिभाषा (Definition)- प्रजाति को विभिन्न विद्वानों ने परिभाषित किया है। कुछ मुख्य परिभाषाएँ इस प्रकार हैं
डी० एन० मजुमदार के अनुसार- "यदि व्यक्तियों के किसी समूह को समान शारीरिक लक्षणों के आधार पर अन्य समूहों से पृथक् पहचाना जा सके तो चाहे इस जैविकीय समूह के सदस्य कितने ही बिखरे क्यों न हों, एक प्रजाति हैं।'
क्रोबर के अनुसार- " प्रजाति एक सही जैविकीय अवधारणा है। यह वंशानुक्रमण द्वारा बँधा समूह है। यह पैदाइश से या जननिक वाहक तत्त्वों से उपजीव जाति (sub species) से सम्बन्धित है। " .
बीसेंज तथा बीसेंज के अनुसार- " प्रजाति वंशानुगत शारीरिक विभिन्नताओं के आधार पर पहचाने जाने वाले विशाल समूह को कहते हैं। "
इस प्रकार यह स्पष्ट है कि प्रजाति एक क्षेत्रीय या सांस्कृतिक समूह नहीं है, बल्कि यह समान शारीरिक लक्षणों वाले व्यक्ति का समूह है।
प्रजाति के लक्षण तथा निर्धारण (Traits and determinants of race):
प्रजाति के सभी लोग शारीरिक लक्षणों की दृष्टि से समान नहीं होते। उनमें अनेक भिन्नताएँ होती हैं। प्रजातियों के शारीरिक भेदों को दो भागों में बाँटा गया है
1. निश्चित लक्षण (Definite traits )
2. अनिश्चित लक्षण (Indefinite traits )
1. निश्चित लक्षण- निश्चित लक्षण वे हैं जिनका परिमाण आँका जा सकता है और जिन्हें गणित की भाषा में व्यक्त किया जा सकता है। इसके अन्तर्गत निम्न बातों पर विचार किया जा सकता है
(i) कद ( Stature)- प्रजाति भेद का सबसे पहला निश्चित लक्षण कद है, क्योंकि कद की सरलतापूर्वक माप की जा सकती है, पर मनुष्य की कद को पर्यावरण प्रभावित करता है। पर्यावरण के प्रभावों के फलस्वरूप भी कद प्रजातीय भेद का मुख्य आधार है। कद को टीपीनाई ने चार वर्गों में बाँटा है। उनके अनुसार 5 फीट 7 इंच से जो कद अधिक है वह लम्बा, 5 फीट 5 इंच से 5 फीट 7 इंच तक कद औसत और इससे कम को औसत से कम माना जाता है। इस प्रकार कद के द्वारा प्रजाति का निर्धारण किया जाता है।
(ii) शीर्ष देशना तथा कपाल देशन (Cephalic index and craninal index)- मनुष्य के निश्चित शारीरिक लक्षणों में इसका स्थान महत्त्वपूर्ण है। खोपड़ी को तीन भागों में बाँटा गया है-
(i) लम्बी खोपड़ी (Doliche-cephalic)
(ii) मध्यम खोपड़ी (Meso cephalic)
(iii) चौड़ी खोपड़ी (Rachy-cephalic)।
यह विभाजन प्रजातियों के शीर्ष देशना के आधार पर किया गया है। शीर्ष देशना तथा कपाल देशना में अन्तर है। जीवित व्यक्तियों के सिर के देशना को शीर्ष देशना कहते हैं और मृत व्यक्तियों की खोपड़ी की देशना को कपाल देशना कहा जाता है। इन दोनों का अन्तर निकालने का एक निश्चित नियम है। शीर्ष देशना अथवा कपाल देशना को निकालने के लिए खोपड़ी की चौड़ाई को लम्बाई से भाग दिया जाता है और फिर 100 से गुणा किया जाता है। इस आधार पर लम्बाई-चौड़ाई का पारस्परिक अनुपात निकलता है। इसका सूत्र है
सिर की चौड़ाई/ सिर की लम्बाई x 100 = शीर्ष देशना, कपाल देशना
इस प्रकार शीर्ष देशना के आधार पर खोपड़ियों को तीन भागों में विभाजित कर प्रजाति का निश्चय किया जाता है। जिन प्रजातियों की शीर्ष देशना 71 से कम होती है उनकी खोपड़ी को लम्बी खोपड़ी में शामिल किया जाता है। ऐसी खोपड़ी के लोग उत्तरी अफ्रीका में पाये जाते हैं। इसके अतिरिक्त कुछ प्रजातियों के सिर मध्यम होते हैं। मध्यम सिर का तात्पर्य उस सिर से है जिसकी शीर्ष देशना 57 तथा 80 के बीच होती है। इस प्रकार के कपाल के लोग उत्तरी-पश्चिमी यूरोप में पाये जाते हैं। हालैण्ड, फ्रांस, जर्मनी, बेल्जियम आदि स्थानों पर निवास करने वाले लोग मध्य कपाल के होते हैं। किसी प्रजाति की शीर्ष देशना यदि 80 से अधिक होती है तो उसे चौड़े कपाल का कहा जाता है। मंगोलियन स्कन्ध की सभी प्रजातियाँ प्रायः चौड़े कपाल की होती हैं। नार्डिक जाति के लोगों को भी चौड़ी खोपड़ी का माना जाता है, लेकिन नार्डिक जाति के सभी लोगों की खोपड़ी चौड़ी नहीं होती है।
(iii) खोपड़ी का घनत्व (Density of the skull)- प्रजाति निश्चित करने का एक आधार खोपड़ी का घनत्व भी है। प्रत्येक व्यक्ति की खोपड़ी का घनत्व एक-दूसरे से भिन्न होता है। इन भिन्नता के आधार पर प्रजाति को एक-दूसरे से पृथक् किया जाता है। इस विधि का प्रयोग मनुष्य की मृत्यु के बाद किया जाता है। खाली खोपड़ी में रेत आदि भरकर घनत्व का पता लगाया जाता है। इस दृष्टिकोण से काकेशियन प्रजाति की खोपड़ी का घनत्व सबसे अधिक होता है और नीग्रो प्रजाति की खोपड़ी का घनत्व सबसे कम होता है। प्रजातिवादियों का कहना है कि अधिक घनत्व की खोपड़ी वाले लोग कम घनत्व की खोपड़ी वाले लोगों की अपेक्षा अधिक बुद्धिमान होते हैं। लेकिन यह धारणा एस्किमों की खोपड़ियों का घनत्व निकालने से गलत साबित हुई है। इन लोगों की खोपड़ी का घनत्व काकेशियन प्रजाति के लोगों से अधिक है लेकिन एस्किमों लोगों की अपेक्षा काकेशियन लोग अधिक बुद्धिमान हैं।
(iv) नासिका देशना (Nasal index)- नासिका देशना द्वारा भी प्रजाति का निर्धारण किया जाता है। इसे निकालने के लिए नासिका की चौड़ाई को 100 से गुणा करके उसमें नासिका की लम्बाई से भाग दिया जाता है। इसे निकालने का सूत्र यह है-
नासिका की चौड़ाई/ नासिका की लम्बाई x 100 = नासिका देशना
नासिका को तीन भागों में बाँटा जाता है-
1. लम्बी नाक (Leptorrhine)
2. चपटी नाक (Mesorrhine)
3. चौड़ी नाक (Pratlyrrhine)
प्रत्येक प्रजाति की नासिका एक-दूसरे से भिन्न होती है। जैसे- कोकेशियन प्रजाति के लोगों की नाक लम्बी होती है, जबकि नीग्रों प्रजाति के लोगों की नाक चौड़ी होती है। नासिका के तुलनात्मक अध्ययन द्वारा प्रजाति का पता चलता है। पर आयु के अनुसार नासिका की लम्बाई और चौड़ाई में अन्तर पाया जाता है। इसलिए तुलनात्मक अध्ययन में जिन दो समूहों का अध्ययन किया जाय तो उसमें दोनों समूहों के लोगों की आयु का समान होना आवश्यक है।
(v) हाथ-पैर की लम्बाई (Length of arms and legs)- प्रजाति की भिन्नता हाथ-पैर की लम्बाई से भी प्रकट होती है। इसमें मनुष्य के कन्धों से लेकर केहुँनी तक और केहुँनी से लेकर हाथों तक की लम्बाई को मापा जाता है। यह लम्बाई प्रत्येक प्रजाति में अलग-अलग होती है। अनेक जनजातियों के लोगों के हाथ की लम्बाई, पैरों की अपेक्षा अधिक होती है। जबकि आधुनिक प्रजातियों में पैरों की अपेक्षा हाथों की लम्बाई कम होती है।
(vi) रक्त समूह (Blood Group)- मानवशास्त्री प्रजातियों की भिन्नता को देखने के लिए रक्त का परीक्षण करते हैं। परन्तु इस सम्बन्ध में अनेक विद्वानों ने आपत्ति उठायी है। इसका कारण यह है कि एक ही प्रजाति के अन्तर्गत विभिन्न व्यक्तियों का रक्त एक-दूसरे से मेल नहीं खाता है। रक्त के आधार पर प्रजाति भिन्नता को दर्शाने का आरम्भ लेडस्टीनर द्वारा किया गया। परीक्षण के आधार पर लेडस्टीनर ने मानव रक्त को तीन भागों में बाँटा है और इसे A, B तथा O नाम दिया। इसके बाद स्टरली तथा डेकोस्टेलो ने एक चौथे प्रकार के रक्त की खोज की और उसका नाम AB रखा। प्रत्येक प्रजाति में इन रक्त समूहों में से किसी एक की प्रधानता होती है। मानवशास्त्रियों का कहना है कि एशिया में 'B' रक्त समूह की और यूरोप में 'A' रक्त समूह की प्रधानता है।
(2) अनिश्चित लक्षण- अनिश्चित शारीरिक लक्षणों के आधार पर भी प्रजाति की भिन्नता को दर्शाया जाता है। इसके अन्तर्गत निम्न बातों पर विचार किया जाता है-
(i) त्वचा का रंग (Pigmentation)- त्वचा के रंग के आधार पर प्रजाति को दर्शाया जाता है। अवलोकन मात्र से ही श्वेत और अश्वेत प्रजाति की भिन्नता को त्वचा के रंग द्वारा निश्चित कर लेते हैं। एक नीग्रो तथा एक अमेरीकन को बड़ी सरलता से इस आधार पर पहचाना जा सकता है। रंग के आधार पर त्वचा तीन तरह की होती है- (1) गौर वर्ण (2) पीत वर्ण तथा (3) श्याम वर्ण। इन वर्णों के आधार पर मानव शास्त्रियों ने मनुष्य को विभिन्न प्रजातियों में बाँटा है। काकेशियन प्रजाति गौर वर्ण की होती है और नीग्रो श्याम वर्ण की। इसी प्रकार मंगोल प्रजाति पीत वर्ण की होती है। वर्ण को प्रजाति निर्धारण का अन्तिम तत्त्व नहीं माना जाता है। मानव की त्वचा विशेष रूप से जलवायु और भौगोलिक परिस्थितियों पर निर्भर है।
(ii) आँखों का रंग (Colour of eyes)- प्रजाति निर्धारण का यह लक्षण सभी प्रजातियों में समान रूप से लागू नहीं होता है। केवल काकेशियन प्रजाति के लोगों के वर्गीकरण में यह विशेष सहायक होता है। काकेशियन प्रजाति में आँख के तारे का रंग भूरा, हरा या नीला होता है। शेष प्रजातियों में आँख के तारे में काला रंग पाया जाता है। प्रजाति निर्धारण की दृष्टि से यह लक्षण विशेष महत्त्वपूर्ण नहीं है। इसका क्षेत्र भी सीमित है। इसका प्रयोग केवल जीवित व्यक्ति के ऊपर किया जाता है।
(iii) बाल (Hair)- प्रजाति निर्धारण में बालों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। इसमें बाहरी प्रभाव से कम अन्तर पैदा होता है। इसलिए जीवित व्यक्तियों के ऊपर इसके प्रयोग में आसानी होती है। इसे बालों की बनावट के आधार पर तीन भागों में बाँटा जाता है - सीधे बाल, घुँघराले बाल तथा ऊनी बाल। बालों के ये प्रकार प्रजाति निर्धारण में सहायक होते हैं। नीग्रोयाड प्रजाति के बाल ऊनी होते हैं, मंगोलॉयड प्रजाति के सीधे तथा आस्ट्रेलियॉड प्रजाति के बाल घुँघराले होते हैं। इसके अलावे बालों के रंग में भी अन्तर पाया जाता है। कुछ के बाल काले रंग के होते हैं और बाल भूरे रंग के तथा लाल रंग के होते हैं।
(iv) होठ (Lips)- होठों की बनावट प्रत्येक प्रजाति को अलग-अलग होती है। कुछ प्रजातियों के होठ मोटे होते हैं और अन्दर की ओर दबे रहते हैं। इसके विपरीत कुछ प्रजातियों के होठ पतले होते हैं और बाहर की तरफ लटके रहते हैं। मोटे और बाहर निकले हुए होठ नीग्रो प्रजाति में मिलते हैं। शेष प्रजातियों में होठ प्रायः पतले होते हैं और अन्दर की ओर झुके रहते हैं।
इस प्रकार निश्चित तथा अनिश्चित लक्षणों के आधार पर एक प्रजाति को दूसरी प्रजाति से अलग किया जाता है। परन्तु इन लक्षणों के आधार पर प्रजाति निर्धारण में अनेक कठिनाइयाँ हैं। सबसे मुख्य कठिनाई यह है कि जिन लक्षणों को हम प्रजाति का विभेदक मानते हैं वे न्यूनाधिक मात्रा में सभी प्रजातियों में पाये जाते हैं। एक ही प्रजाति के अन्तर्गत अनेक वर्गों के लोग मिलते हैं। इसी प्रकार एक ही प्रजाति के अन्तर्गत रक्त समूह की भिन्नता भी देखने को मिलती है। किसी व्यक्ति में 'A' समूह की प्रधानता होती है तो किसी में 'B' समूह की।
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