Define the main principles of Democratic socialism | प्रजातांत्रिक समाजवाद के मुख्य सिद्धान्तों का वर्णन


Define the main principles of Democratic socialism. (प्रजातांत्रिक समाजवाद के मुख्य सिद्धान्तों का वर्णन करें।)



प्रजातांत्रिक समाजवाद, समाजवाद का वह रूप है जिसकी स्थापना प्रजातांत्रिक तरीकों से हुई है। प्रजातात्रिक समाजवाद दो शब्दों के मेल से बना है-प्रजातंत्र और समाजवाद। समाजवाद एक दर्शन है और लोकतंत्र उसे प्राप्त करने का साधन। एक लेखक ने इसकी परिभाषा देते हुए कहा है कि लोकतांत्रिक समाजवाद का उद्देश्य एक जातिविहीन, वर्गविहीन समाज की स्थापना है जो प्रजातांत्रिक विचारधारा पर आधारित हो और जिसमें वैयक्तिक गरिमा तथा सामाजिक न्याय अक्षुण्ण रहें। ऐसे समाज की स्थापना शांतिपूर्ण, सहकारितापूर्ण तथा प्रजातांत्रिक गतिविधियों द्वारा ही संभव है।


प्रजातांत्रिक समाज के मुख्य सिद्धांत (Main Principles of Democratic Socialism):- 
श्री जयप्रकाश नारायण ने लिखा है कि यद्यपि प्रजातांत्रिक समाजवाद का कोई बना बनाया चित्र प्रस्तुत नहीं किया जा सकता तथापि इसके मुख्य सिद्धांत हमें विभिन्न देशों के समाजवादी दलों के कार्यक्रमों को देखने से मिलता है। प्रजातांत्रिक समाजवाद के मुख्य सिद्धांत को निम्नलिखित ढंग से निरूपित किया जा सकता है


1. समाज के व्यापक हितों का महत्त्व:- प्रजातांत्रिक समाजवाद व्यक्ति के संकीर्ण एवं स्थायी हितों की अपेक्षा समाज के व्यापक हितों को अत्यधिक बल देता है। इसका लक्ष्य जनकल्याण है जो एक पूर्ण समाजवाद है जिसमें समाज के सभी भागों के हितों को सुरक्षित किया जाता है तथा उनका विकास किया जाता है। यह राज्य से अपेक्षा करता है कि व्यक्ति की गतिविधियों को इस प्रकार नियमित करे कि वह जनकल्याण के सम्पादन में कोई बाधा न खड़ी कर सके।

2. प्रतिस्पर्धा के स्थान पर परस्पर सहयोग:- प्रजातांत्रिक प्रतिस्पर्धा स्थान एवं सहयोग पर विशेष जोर देता है। यह पूँजीवाद की तरह प्रतियोगिता पर ध्यान न देकर आपस में परस्पर सहयोग की भावना से आगे बढ़ने की ओर विशेष ध्यान देता है। प्रजातांत्रिक समाजवाद में पूँजीवाद की बुराइयों को दूर करने के लिए प्रतिस्पर्धा के स्थान पर परस्पर सहयोग और सामंजस्य होता है। 'समाजवाद स्थानीय राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय मामलों में प्रतिस्पर्धा के स्थान पर सहयोग स्थापित करने का पक्षपाती है।" 36


3. समानता के सिद्धांत पर आधारित है:- समाजवाद का मूल तत्त्व आर्थिक और सामाजिक समानता है। Labless का कथन है कि "समाजवादी सिद्धांतों का ध्येय यह है कि सामाजिक व्यवस्थाओं में अधिक समानता लायी जाय।" इसका उद्देश्य व्यक्ति के लिए न्याय उपलब्ध करना है। यह जाति, धर्म की सम्पन्नता आदि के आधार पर किसी को सुविधा देने अथवा वंचित रखने का पूर्ण विरोधी है। इसी उद्देश्य की पूर्ति हेतु इसके अन्तर्गत श्रमिकों के उपयुक्त, न्यूनतम मजदूरी, निश्चित कार्य, समय, अवकाश, बीमा, वृद्धा पेंशन, चिकित्सा सहायकों आदि को सुनियोजित किया जाता है।


4.आर्थिक स्वतंत्रता के साथ-साथ बौद्धिक और राजनीतिक स्वतंत्रता का प्रतिपादक:-
लोकतांत्रिक समाजवाद की मान्यता है कि स्वतंत्रता के बिना समाजवाद संभव नहीं हो सकता है। 
वह व्यक्तियों के लिए विचार, भाषण, संगठन और सम्मेलन आदि की नागरिक और राजनीतिक स्वतंत्रताओं साथ रोजी-रोटी के अधिकार को भी स्वीकार करती है। उसके अनुसार जब तक मनुष्य भौतिक आवश्यकताओं की चिंता से मुक्त नहीं होता, स्वतंत्रता उसके लिए आशीर्वाद है। 

5. उद्योगों तथा जन-कल्याण के अन्य साधनों पर राज्य का नियोजन:- प्रजातांत्रिक समाजवाद आधारभूत और महत्त्वपूर्ण उद्योगों के राष्ट्रीयकरण तथा उन पर राज्य के नियंत्रण का हिमायती है। लेकिन वह उद्योगों के राष्ट्रीयकरण से होनेवाला लाभ को जनकल्याण के कार्यक्रमों तथा योजनाओं में प्रयुक्त करना चाहता है। लोकतांत्रिक समाजवाद की मान्यता है कि प्रकृति के स्वतंत्र उपहार जैसे भूमि और खान व्यक्तिगत लाभ के लिए नहीं होते बल्कि राज्य का इन पर स्वामित्व होता है।

6. लोक-कल्याणकारी राज्य की स्थापना पर बल:- प्रजातांत्रिक समाजवादी लोक-कल्याणकारी राज्य की स्थापना करना चाहते हैं। वे राज्य के कार्यक्षेत्र को व्यापक बनाने के पक्ष में है। सामाजिक हित के सभी महत्त्वपूर्ण कार्यों को वे राज्य को सौंपना चाहते हैं। जैसे-नियोजित विकास, जन सामान्य के जीवन-स्तर को ऊपर उठाने, आर्थिक विषमताओं को कम करने तथा जनता की मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करने का कार्य है।

7.जनतंत्र का विकासशील आधार:- प्रजातांत्रिक समाजवाद प्रजातंत्र के आधार को विस्तृत करना चाहता है। प्रजातांत्रिक समाजवाद के अनुसार यदि प्रजातंत्र को वास्तविक और सार्थक होना है तो उसे राजनीति की सीमा को लांघ कर आर्थिक रूप में प्रवेश करना होगा। लोकतंत्र में जनतांत्रिक समाजवाद के अटूट विश्वास को अभिव्यक्त करते हुए Darvin ने लिखा है कि लोकतांत्रिक प्रणाली समाजवाद का अन्तर्निहित अंग है जिसे समाजवाद से पृथक् किया जा सकता।

8. सत्ता का विकेन्द्रीकरण:- प्रजातांत्रिक समाजवाद सत्ता के विकेन्द्रीकरण का समर्थक है। उनके अनुसार स्थानीय संस्थाओं की स्थापना कर उन्हें अधिकाधिक शक्तियाँ प्रदान की जा रही हैं। स्थानीय लोकतंत्र को पुनर्जीवित करने के लिए सार्वजनिक स्वभाव की छोटी-छोटी इकाईयों की स्थापना की जा सकती है।

9. शांतिपूर्ण और वैधानिक तरीकों में विश्वास:- प्रजातांत्रिक समाजवादी पूर्ण समाजवाद लाने के लिए शांतिपूर्ण और वैधानिक तरीकों में विश्वास करते हैं। वे हिंसात्मक और क्रांतिकारी तरीकों से नहीं बल्कि समाज में क्रमिक रूप से उद्देश्यपूर्ण परिवर्तन लाना चाहते हैं। Jai Prakash Narayan के अनुसार और संविधानवाद प्रजातांत्रिक समाजवाद के आधार हैं।

Evaluation (मूल्यांकन)
इसके इन सभी सिद्धांतों के मूल्यांकन से एक ओर निम्न बातें सामने आती हैं-
(i) यह मानव व्यक्तित्व की गरिमा का पोषक है। 
(ii) यह सामाजिक भलाई चाहता है। 
(iii) यह पूँजीवाद की बुराइयों को दूर करना चाहता है। 
(iv) यह प्रजा को वास्तविक बनाना चाहता है।



तो दूसरी ओर यह कहा जाता है कि-
(i) इससे शांतिपूर्ण ढंग से समाजवाद की स्थापना संभव नहीं। 
(ii) यह तानाशाही शासन के लिए आधार का काम करता है। 
(iii) इससे उत्पादन में गिरावट आने का भय है। 
(iv) इससे नौकरशाही का विकास होता है। 
(v) इससे उपभोक्ता को परेशानी होती है। 
(vi) इससे आत्म विरोधी विचारधारा का विकास होता है।

इस प्रकार हम देखते हैं कि प्रजातांत्रिक समाजवाद में गुण-दोष दोनों हैं, फिर भी यह स्वीकार करना पड़ता है कि यह एक श्रेष्ठ और गतिशील विचारधारा है। यह मार्क्स और लेनिन की भांति कट्टर राजदर्शन नहीं है। यह एक ऐसी व्यावहारिक व्यवस्था प्रस्तुत करता है जिसमें समाज की वेदी पर व्यक्ति को बलिदान किये वगैर समाज तथा व्यक्ति का विकास किया जा सके।



 

Post a Comment

0 Comments