What is Politics? The elements of Politics | राजनीति क्या है ? राजनीति के मुख्या तत्व क्या है।

 इस शब्द के बारे में विद्वानों में मतभेद है की "राजनीति" शब्द का सही अर्थ क्या है। यूनान के अरस्तु ने इस शब्द का प्रयोग किया और अपनी पुस्तक का नाम ही "पॉलिटिक्स" रखा, जिसका अर्थ राजनीती होता है। 

पॉलिटिक्स शब्द यूनानी भाषा के पालिस शब्द से बना है जिसका अर्थ है नगर-राज्य- नगर-राज्य के सभी पहलुओं को व्यक्त करने वाले शास्त्र को राजनीति कहा जाता था। अरस्तू ने नगर राज्य के प्रत्येक नागरिक को प्राणी कहा है। उसके अनुसार प्रत्येक नागरिक को राजनीति में भाग लेना चाहिए। अरस्तु ने राजनीति के एक ही रूप को स्वीकार किया और वो रूप था - आदर्शवादी। अरस्तु के अनुसार राजनीति से ही नागरिक यह सीखते है की उन्हें क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए। उसका कहना था की राजनीति का उद्देश्य यह जानना नहीं है कि "राज्ये कैसा है" बल्कि यह जानना है कि "राज्ये कैसा" होना चाहिए।  अरस्तु के बाद के राजनीतिक दार्शनिको ने भी उसी के मत का समर्थन किया इसी प्रकार बहुत दिनों तक राजनीति के आदर्शवादी रूप का अध्ययन होता रहा। 


सर फ्रेडरिक पोलक ने राजनीति के सैद्धांतिक और वयवहारिक पक्षों को देखते हुए उसे दो भागो में विभक्त किया 

(i) सैद्धांतिक :- सैद्धांतिक राजनीति राज्ये के मूल तत्व का अध्ययन करती है। इसका राज्ये के उत्पत्ति, प्रकृति, उदेश्ये, प्रशासन के सिद्धांत से है। 

(ii) व्यावहारिक :- व्यावहारिक राजनीति  सम्बन्ध राज्ये के क्रियात्मक रूप से है। व्यावहारिक राजनीति में राज्ये और सरकार के व्यावहारिक रूप और उसकी वास्तविक क्रियाओं का अध्ययन होता है। 

आधुनिक युग में "राजनीति" शब्द का प्रयोग राज्ये के क्रियात्मक रूप में किया जाता है। राज्ये के सैद्धांतिक पक्ष से इसका कोई संबंध नहीं रह गया। व्यावहारिक राजनीति ही आज सही राजनीति मानी जाती है। राज्ये के संचालन में संस्थाओं का योगदान होता है। उसे ही राजनीति के नाम से जाना जाता है। निर्वाचन, राजनितिक दाल की चाल, सरकारी लक्ष्य को प्राप्त करने का तरीका आदि को राजनीति कहा जाता है। इस प्रकार राजनीति का अर्थ दलगत शासन को चलने का दाव-पेंच, चुनाव जितने के तरीके आदि हो गए है



ब्लांश्ली का कहना है कि "राजनीति विज्ञानं से ज्यादा कला है, क्योकि इसका संबंध राज्ये के बहरी आचरण से है। "


प्रो० गार्नर के अनुसार - " राजनीति शब्द का अर्थ राज्ये के वास्तविक बहरी आचरण से है।" आधुनिक युग में टी 'राजनीति' शब्द का प्रयोग और भी संकुचित अर्थ में होने लगा है। 'राजनीति' शब्द को घृणा के दृष्टि से देखा जाने लगा है। प्रायः लोग कहते सुनाई पड़ते है कि अमुक गाओ में गांव में बहुत अधिक राजनीति हो गई है, अमुक कॉलेज में राजनीति बहुत अधिक है। स्पष्ट है कि अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए जो साधन अपनाये जाते है, वही राजनीति कही जाने लगी है। राजनीति का प्रयोग धोखेबाज़ी,बेईमानी,झूठ-फरेब तथा दालबंदी के अर्थो में होने लगा है। 

परन्तु उपर्युक्त सभी धारणाये राजनीति का सही अर्थ प्रस्तुत नहीं करती।  कुछ विद्वानों ने इसका सही अर्थ सामने रखा है। सोलटाउ के शब्दों में - "राजनीति उस सभी व्यक्तियों से सम्बंधित है जो उत्तरदायित्व की भावना रखते है। अतः प्रत्येक उत्तरदायित्व व्यक्ति को राजनीति से संबंध रखना ही पड़ता है। उसके सहारे ही वो विभिन्न समस्याओं को सुलझाता है।  सच्चे अर्थो में राजनीति एक मानवीय क्रिया है। स्पाइरो ने इसकी सही परिभाषा दी है। उसके अनुसार-"राजनीति वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा मानव समुदाय अपनी समस्याओं को सुलझाता है।'' इस प्रकार राजनीति सही अर्थ में मानवीय क्रिया या मानवीय व्यवहार दर्शाती है। मनुष्य अपने हितों की पूर्ति के लिए तरह-तरह के कदम उठाता है। उसके द्वारा उठाये गये कदमों और उपायों का संग्रहित रूप ही राजनीति है।

 राजनीति के तत्व- 'राजनीति' के विभिन्न अर्थों को समझने से ही राजनीति के तत्त्व भी स्पष्ट हो जाते हैं। कुछ मुख्य तत्त्वों की चर्चा निम्न प्रकार से की जा सकती है


1. राजनीति एक मानवीय क्रिया है:- मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। राजनीति मनुष्य की इस सामाजिकता से ही जुड़ी हुई मौलिक मानवीय क्रिया है। मनुष्य समाज में रहता है और एक-दूसरे के साथ सहयोग रखने की प्रवृत्ति रखता है, परन्तु उनके बीच संघर्ष और विवाद होना भी स्वाभाविक है। संघर्ष और विवाद की समस्या किस प्रकार हल हो सके इसका भी प्रयास किया जाता है। इस प्रयास को ही राजनीति की संज्ञा दी जाती है और इसी अर्थ में राजनीति एक मानवीय क्रिया है। माइकेल ऑकशट के अनुसार-"राजनीति एक ऐसी क्रिया है जिसमें एक नागरिक होने के नाते मनुष्य अपने समुदाय की व्यवस्थाओं और दशाओं के संबंध में सोचता और समझता है, उसमें परिवर्तन के लिए सुझाव देता है, प्रस्तावित सुझावों को स्वीकार करने के लिए दूसरे को मनाता है तथा परिवर्तनों को आगे बढ़ाने के लिए स्वयं उनके अनुसार व्यवहार करता है।"

2. राजनीति सर्वव्यापक क्रिया है:- राजनीति को सीमा में बाँधकर नहीं रखा जा सकता है। यह सर्वव्यापक क्रिया मानी जाती है। राजनीति सभी स्तरों पर स्थानीय, राष्ट्रीय, अन्तर्राष्ट्रीय तथा आन्तरिक स्तरों पर भी दिखाई पड़ती है। सभी जगहों पर राजनीति किसी-न-किसी रूप में अवश्य विद्यमान रहती है। इसी कारण राजनीति के स्वरूप को सर्वव्यापी माना जाता है।

3.राजनीति परिवर्तनशील क्रिया है:- राजनीति को शाश्वत क्रिया नहीं कहा जा सकता है। यह एक परिवर्तनशील क्रिया है। मानव व्यवहार में बराबर परिवर्तन होते रहते हैं, विभिन्न दशाओं में उसका व्यवहार भिन्न होता है। स्थान-स्थान पर भी मानवीय व्यवहार में परिवर्तन देखने को मिलता है। इस परिवर्तन के साथ राजनीति भी बदलती रहती है। इस प्रकार राजनीति एक परिवर्तनशील क्रिया है।

4. राजनीति शक्ति के लिए एक संघर्ष है:- आधुनिक विद्वानों का मत यह है कि राजनीति शक्ति के लिए ही एक संघर्ष है। मनुष्य का मुख्य उद्देश्य शक्ति प्राप्त करना होता है। इसी कारण वह आपस में संघर्ष करता है। इसी कारण शक्ति को राजनीति की मूल अवधारणा कहा गया है। जिस व्यक्ति के पास शक्ति होती है उसी के पक्ष में राजनीतिक निर्णय होते हैं अर्थात् शक्ति के द्वारा वह दूसरे को नियमित कर पाता है। शक्ति के द्वारा ही दूसरे मनुष्यों पर अपना प्रभाव कायम कर पाता है और इस प्रकार राजनीतिक विजय प्राप्त करता है। इसे भी राजनीति का एक महत्त्वपूर्ण तत्त्व माना जाता है।

5. राजनीति संघर्ष का परिणाम है:- राजनीति का सबसे आवश्यक तत्त्व यह है कि यह संघर्ष का परिणाम है। यह पहले स्पष्ट किया जा चुका है कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज में रहनेवाले अन्य मनुष्यों से उसका हित टकराना स्वाभाविक है। अतः मनुष्य सामाजिक प्राणी तो अवश्य है, परन्तु साथ ही उसमें संघर्ष और कलह भी होते रहते हैं। वह अपने हितों पर ध्यान देता है। उसका स्वार्थ अलग होता है। प्रत्येक मनुष्य अपने हितों या स्वार्थों की सिद्धि पहले चाहता है। अतः आपस. संघर्ष स्वाभाविक है। परन्तु मनुष्य इन संघर्षों को सुलझाने की कोशिश करता है। बाहरी शक्ति द्वारा भी उसे सुलझाया जाता है। मनुष्य का यह सारा व्यवहार हो राजनीति है। संघर्ष और फिर समाधान की कोशिश राजनीति के अभिन्न अंग हैं। इस अर्थ में राजनीति को संघर्ष का परिणाम कहा जाता है। संघर्ष के कारण ही मानव तरह-तरह का व्यवहार करता है और इसी व्यवहार का अध्ययन राजनीति है। उपर्युक्त विवेचनों से यह स्पष्ट होता है कि 'राजनीति' के विभिन्न अर्थ और तत्त्व हैं। यह एक मौलिक, निरन्तर परिवर्तनशील और स्वाभाविक मानवीय क्रिया है। इसे सीमा में बाँधकर नहीं रखा जा सकता है। यह सम्पूर्ण समाज की मानवीय क्रिया है। केवल राज्य तक ही इसका संबंध सीमित नहीं है।



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