Cell - Basic Unit Of Life (कोशिका- जीवन की आधारभूत इकाई)

 प्रत्येक जीव का शरीर कोशिकाओं का बना होता है और कोशिका को जीवन की आधारभूत संरचना और क्रियात्मक इकाई (basic structural and functional unit of life) माना गया है। कोशिका जीवद्रव्य (protoplasm) से बनी एक रचना है, जिसमें विभिन्न रासायनिक तत्त्व संयोजन कर यौगिक के रूप में उपस्थित रहते हैं। अकार्बनिक यौगिक मुख्यतः जल एवं लवण के रूप में तथा कार्बनिक यौगिक मुख्यतः प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइड्रेट, न्यूक्लिक अम्ल के रूप में रहते हैं। कोशिका में यह जीवद्रव्य एक छिद्रयुक्त चयनात्मक पारगम्य प्लाज्माझिल्ली (selectively permeable plasma membrane) से घिरी रहती है एवं इसके बीच में एक केंद्रक (nucleus) होता है।

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कोशिकाओं में विविधता

जीवों की कोशिकाओं के रूप (shape), आकार (size) और संख्या (number) में काफी भिन्नता होती है। आप यदि चित्र 1.1 को देखें तो आपको विभिन्न कोशिकाओं के रूप और आकार में विविधता का ज्ञान सरलता से हो जाएगा।
कोशिकाएँ अलग-अलग आकार की होती हैं। यह कम-से-कम 0.1 माइक्रोमीटर (um) का होता है, जैसे प्लूरोन्यूमोनिया (pleuroneumonia) और अधिकतम 170 x 135 मिलीमीटर का होता है, जैसे शुतुरमुर्ग (ostrich) का अंडा। जीवाणु की कोशिका 1 माइक्रोमीटर से 10 माइक्रोमीटर व्यास तक की होती है। तंत्रिका कोशिकाओं (nerve cells) का आकार एक मीटर से भी अधिक लंबा हो सकता है। तंत्रिका कोशिका (न्यूरॉन) मनुष्य के शरीर की सबसे बड़ी कोशिका है।


कोशिकाएँ विभिन्न रूपों की होती हैं। कुछ जीवों का शरीर सिर्फ एक कोशिका का बना होता है। ऐसे जीव एककोशिकीय (unicellular) होते हैं, जैसे अमीबा, पैरामीशियम, क्लेमाइडोमोनस आदि। इन जीवों में जीवन-संबंधी सारे कार्य अकेली कोशिका द्वारा संपन्न होते हैं, जबकि बहुकोशिकीय (multicellular) जीवों का शरीर अनेक कोशिकाओं का बना होता है, जैसे लगभग 60 किलोग्राम के एक मानव शरीर में 60 x 1015 कोशिकाएँ पाई जाती हैं। बहुकोशिकीय जीवों में विभिन्न कार्यों को सुचारु रूप से संपन्न करने के लिए अनेक कोशिकाएँ समाहित होकर विभिन्न अंगों का निर्माण करती हैं। इनमें श्रम का विभाजन (division of labour) होता है। विभिन्न प्रकार के पौधे (शैवाल, कवक, मॉस, फर्न आदि) तथा जंतु इसके उदाहरण हैं। बहुकोशिकीय जीवों का विकास एक कोशिका से ही कोशिका विभाजन द्वारा हुआ है।

कोशिका का आकार एवं आकृति उसके कार्यों के अनुरूप होती है। कुछ कोशिकाएँ अपना आकार बदलती रहती हैं, जैसे अमीबा। हमारे रुधिर में मौजूद श्वेत रक्त कोशिकाएँ (white blood cells) जिन्हें ल्यूकोसाइट्स कहते हैं, भी निरंतर अपना रूप बदलती रहती हैं। तंत्रिका कोशिका का आकार बहुत पतला और लंबे तार की तरह होता है। इसके द्वारा आवेगों (impulses) का चालन होता है। जैसे बिजली का चालन तारों द्वारा होता है, ठीक उसी प्रकार आवेगों का चालन तार की ही तरह लंबी, पतली तंत्रिका कोशिकाओं द्वारा शरीर के विभिन्न भागों में होता है। कुछ जीवों में कोशिका का आकार लगभग स्थिर रहता है।

 भिन्न-भिन्न जीवों में तथा एक ही जीव में अलग-अलग समय में, शरीर में कोशिकाओं की संख्या भी बदलती रहती है। कोशिकाओं की संख्या जीव के शरीर के आकार पर निर्भर करती है। उदाहरण के लिए, चूहे के शरीर में कोशिकाओं की संख्या, हाथी के शरीर में मौजूद कोशिकाओं की संख्या से बहुत ही कम होगी। पौधों में भी वटवृक्ष (banyan tree) की तुलना में गुलाब के पौधे में कोशिकाओं की संख्या बहुत कम होगी।


जीवन-व्यवस्था के स्तर

प्रत्येक जीव के शरीर का निर्माण करनेवाली कोशिका में कुछ मूलभूत कार्य करने की क्षमता होती है। बहुकोशिकीय जीवों में ये कोशिकाएँ आपस में समूह बनाकर ऊतक का निर्माण करती हैं। एक-सी रचना और एक-सा कार्य करनेवाली कोशिकाओं के समूह को ऊतक कहते हैं। ऊतकों के समूह, जो किसी विशेष कार्य को संपन्न करते हैं तथा जिनका विशिष्ट संरचनात्मक संगठन होता है, अंग (organ) कहलाते हैं। उदाहरणस्वरूप, हम भोजन के पाचन की संपूर्ण प्रक्रिया को लें। सबसे पहले भोजन का अंतर्ग्रहण (ingestion) होता है, फिर उसका पाचन (digestion), अवशोषण (absorption), स्वांगीकरण (assimilation) और अनपचे भोजन का मल के रूप में शरीर से बाहर निष्कासन होता है। प्रत्येक कार्य अलग-अलग पाचन-अंगों द्वारा, अर्थात मुख, आमाशय, आँत, यकृत आदि द्वारा संपन्न होता है। मुख, आमाशय, आँत, यकृत आदि सामूहिक रूप से एक विशेष तंत्र की रचना करते हैं, जिसे पाचन तंत्र (digestive system) कहते हैं। इसी प्रकार जीवों में श्वसन तंत्र (respiratory system), परिसंचरण तंत्र (circulatory system), उत्सर्जन तंत्र (excretory system) आदि रहते हैं। सभी अंगतंत्र मिलकर जीव या व्यष्टि (organism) का निर्माण करते हैं।


कोशिका की खोज

कोशिकाओं का वास्तविक ज्ञान माइक्रोस्कोप (सूक्ष्मदर्शी) के आविष्कार के बाद ही प्राप्त हो सका। सर्वप्रथम 1665 में रॉबर्ट हूक (Robert Hooke) नामक एक अँगरेज वैज्ञानिक ने माइक्रोस्कोप का निर्माण किया। हूक ने अपने बनाए माइक्रोस्कोप में कॉर्क (cork) की एक पतली काट में अनेक सूक्ष्म, मोटी भित्तिवाली, मधुमक्खी की छत्ते जैसी कोठरियाँ देखीं। इन कोठरियों को रॉबर्ट हूक ने सेल (cell) का नाम दिया।

लिउवेनहोएक (Leeuwenhoek) नामक एक डच वैज्ञानिक द्वारा माइक्रोस्कोप की लेंस व्यवस्था संशोधित होने के पश्चात कोशिका का अध्ययन आगे बढ़ा। सर्वप्रथम 1674 में उन्होंने अपने उन्नत माइक्रोस्कोप में स्वतंत्र कोशिकाओं जैसे जीवाणु, प्रोटोजोआ आदि को देखा। 1831 में रॉबर्ट ब्राउन (Robert Brown) नामक एक वैज्ञानिक ने बताया कि प्रत्येक कोशिका के केंद्र में एक गोलाकार रचना होती है। इसे ब्राउन ने केंद्रक (nucleus) नाम दिया। पुरकिंजे (Purkinje) ने 1839 में कोशिका के अंदर पाए जानेवाले अर्धतरल, दानेदार सजीव पदार्थ को प्रोटोप्लाज्म या जीवद्रव्य नाम दिया। 1838 में एक वनस्पतिवैज्ञानिक श्लाइडेन (Schleiden) ने कहा कि पादपों का शरीर सूक्ष्म कोशिकाओं का बना होता है। 1839 में प्रसिद्ध प्राणिविज्ञानी श्वान (Schwann) ने बताया कि जंतु का शरीर भी सूक्ष्म कोशिकाओं का बना है। फिर ये दोनों जर्मन वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन के आधार पर एक मत का प्रतिपादन किया। इसे कोशिका सिद्धांत कहते हैं। कोशिका सिद्धांत में उन्होंने यह बात व्यक्त की कि कोशिका शरीर की संरचनात्मक इकाई है।
इसके बाद 1855 में विरचो (Virchow) ने बताया कि नई कोशिकाओं का निर्माण पहले से मौजूद कोशिकाओं से होता है। मैक्स शुल्ज (Max Schultze) ने 1861 में बताया कि कोशिका प्रोटोप्लाज्म का एक पिंड है, जिसमें एक केंद्रक होता है। इस कथन को प्रोटोप्लाज्म मतवाद (protoplasm theory) कहते हैं। इसके बाद 1884 में स्ट्रासबर्गर (Strasburger) ने बताया कि केंद्रक पैतृक लक्षणों की वंशागति में भाग लेता है। इसके बाद अच्छे माइक्रोस्कोप तथा रासायनिक पदार्थ की मदद से कोशिका का अध्ययन जारी रहा। 1931 में इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप का आविष्कार एम० नॉल (M Knoll) एवं इ० रस्का (E Ruska) द्वारा हुआ, जिसकी सहायता से कोशिका एवं कोशिकांगों की रचनाओं का ज्ञान धीरे-धीरे बढ़ रहा है।


कोशिका की संरचन

कोशिका का निर्माण विभिन्न घटकों से होता है जिन्हें कोशिकांग कहते हैं। प्रत्येक कोशिकांग एक विशिष्ट कार्य करता है। इन कोशिकांगों के कारण ही कोशिका एक जीवित संरचना है, जो जीवन-संबंधी सभी कार्य करने में सक्षम होती है। जीवों के सभी प्रकार की कोशिकाओं में एक ही प्रकार के कोशिकांग पाए जाते हैं।

कोशिका की संरचना का अध्ययन हम सूक्ष्मदर्शी या माइक्रोस्कोप की सहायता से ही करते हैं। प्रत्येक कोशिका को अध्ययन की सुगमता की दृष्टि से हम तीन भागों में बाँट सकते हैं

1. कोशिकाझिल्ली
2. कोशिकाद्रव्य
3. केंद्रक
कोशिकाद्रव्य एवं केंद्रक को सम्मिलित रूप से जीवद्रव्य या प्रोटोप्लाज्म कहते हैं

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