Relationship of Political Science with sociology, History, Economics, and Ethics. (राजनीति विज्ञान का समाजशास्त्र, इतिहास, अर्थशात्र एवं नीतिशास्त्र के साथ संबंध।)
राजनीतिशास्त्र एक सामाजिक विज्ञान है अतएव सामाजिक विज्ञान होने के नाते अन्याय सामाजिक विज्ञान के साथ उसका सम्बन्ध होना अनिवार्य है। इसी परिप्रेक्ष्य में हम राजनीति विज्ञान का सम्बन्ध कुछ अन्य सामाजिक विज्ञानों के साथ देखेंगे।
राजनीतिशास्त्र और समाजशास्त्र (Political Science and Sociology):- समाजशास्त्र अन्य सामाजिक शास्त्रों की जननी है। यह मनुष्य के सामाजिक जीवन का शास्त्र है। यह समाज की उत्पत्ति, विकास, संगठन और उसके लक्ष्यों का वर्णन करता है। गेटेल के अनुसार, समाजशास्त्र एक सामान्य सामाजिक शास्त्र है। यह सामाजिक समुदायों पर विचार करता है और सम्पूर्ण सामाजिक जीवन सम्बन्धी नियमों और तथ्यों की खोज करने की कोशिश करता है। समाजशास्त्र में मनुष्य की राजनीतिक, धार्मिक और आर्थिक प्रगति का विवरण होता है। राजनीतिशास्त्र मनुष्य की राजनीतिक उन्नति से मुख्यतया सम्बन्धित है। चूँकि राजनीतिशास्त्र राजनीतिक तथ्यों का केवल एक भाग है अतः समाजशास्त्र की अपेक्षा इसका विषय संकुचित है। दूसरे शब्दों में, हम कह सकते हैं कि समाजशास्त्र सभी सामाजिक शास्त्रों की जननी है और राजनीतिशास्त्र केवल उसकी एक शाखा मात्र है।
समाजशास्त्र और राजनीतिशास्त्र में भिन्नता:- हालाँकि समाजशास्त्र तथा राजनीतिशास्त्र में घनिष्ठ सम्बन्ध है, फिर भी दोनों का क्षेत्र एक-दूसरे से पृथक् है। इसलिए गिडिंग्स ने कहा है कि "आधुनिक काल में राजनीतिशास्त्र ने जो सबसे महत्त्वपूर्ण कदम उठाया है, वह यह है कि उसने मालूम कर लिया है कि उसके अध्ययन के क्षेत्र की सीमा वह नहीं है, जो समाज के अध्ययन के क्षेत्र की है और दोनों के क्षेत्र अलग किये जा सकते हैं। समाजशास्त्र मुख्यतया समाज के अध्ययन और राजनीतिशास्त्र राज्य उत्पत्ति, विकास तथा आधुनिक रूप से सम्बन्धित है।''गार्नर के अनुसार, "राज्य की स्थापना से पूर्व मानव-समाज की संस्थाओं और उसके जीवन का अध्ययन इतिहास एवं समाजशास्त्र का विषय है। राजनीतिशास्त्र का उससे कोई सम्बन्ध नहीं । राजनीतिशास्त्र का सामाजिक संगठन के केवल एक रूप से सम्बन्ध है और वह है राज्य। समाजशास्त्र मानव की सभी संस्थाओं से सम्पर्क रखता है। राजनीतिशास्त्र मानव को एक राजनीति प्राणी मानकर अपना कार्य आरम्भ करता है, वह समाजशास्त्र की तरह इस बात की व्याख्या नहीं करता है कि वह क्यों और कैसे राजनीतिक प्राणी बन गया।" राजनीतिशास्त्र राज्य और सरकार से मुख्यतया सम्बन्धित हैं यह राज्य के बनने से पूर्व समाज की स्थिति का अध्ययन नहीं करता। गिलक्राइस्ट के अनुसार, समाजशास्त्र समाज की आधारभूत घटनाओं का अध्ययन करता है। आधुनिक सामाजिक संगठन का विश्लेषण करके भविष्य के आदर्श सामाजिक जीवन की कल्पना भी इसी के अन्दर शामिल है।
समाजशास्त्र मानव-जीवन का आरम्भ से लेकर अन्त तक अध्ययन करता है। यह राज्य के बनने से पहले मनुष्य की हालत का अध्ययन करता है और राज्य के बनने के पश्चात् भी मनुष्य की दशा का अध्ययन इसके अन्तर्गत आ जाता है, परन्तु राजनीतिशास्त्र राज्य के बनने से पूर्व मानव-समाज से सम्बन्धित नहीं। राजनीतिशास्त्र का अध्ययन राज्य बनने के पश्चात् आरम्भ होता हैं। दूसरे शब्दों में, हम यह कह सकते हैं कि समाजशास्त्र मानव जाति के संगठित तथा असंगठित दोनों युगों का अध्ययन करता है, परन्तु राजनीतिशास्त्र राज्य के बनने से पूर्व मानव-समाज से सम्बन्धित नहीं। राजनीतिशास्त्र का अध्ययन राज्य बनने के पश्चात् आरम्भ होता है। दूसरे शब्दों में, हम यह कह सकते हैं कि समाजशास्त्र मानव जाति के संगठित तथा असंगठित दोनों युगों का अध्ययन करता है, परन्तु राजनीतिशास्त्र केवल संगठित युग का ही अध्ययन करता है जो राज्य के बनने के बाद आरम्भ होता है।
समाजशास्त्र वर्णनात्मक है। और राजनीतिशास्त्र वर्णनात्मक न होकर आदर्शवादी है। यह शास्त्र समाज की उत्पत्ति, विकास तथा आधुनिक रूप के विषय में विस्तृत वर्णन हमारे सामने पेश करता है, परन्तु उनसे कोई परिणाम नहीं निकलता। इस प्रकार, समाजशास्त्र सामाजिक घटनाओं का वर्णन करता है, परन्तु अच्छी और बुरी घटनाओं में पहचान नहीं करता। दूसरे शब्दों में, हम कह सकते हैं कि यह शास्त्र शिक्षाप्रद नहीं है। इसके विरुद्ध राजनीतिशास्त्र घटनाओं का वर्णन केवल कुछ शिक्षा देने के लिए ही करता है, क्योंकि राजनीतिशास्त्र का उद्देश्य एक आदर्श नागरिक का निर्माण करना है।
एक-दूसरे के पूरक:- यद्यपि दोनों शास्त्रों के क्षेत्र भिन्न-भिन्न हैं, फिर भी दोनों एक-दूसरे के पूरक है। समाजशास्त्र राजनीतिशास्त्र से राज्य के संगठन, कार्यों और आधुनिक स्वरूप के विषय में कुछ ज्ञान प्राप्त करता है और राजनीतिशास्त्र समाजशास्त्र से समाज की उत्पत्ति, विकास तथा सामाजिक नियमों के विषय में कुछ ज्ञान प्राप्त करता है। इसलिए प्रो गिडिंग्स का कथन है कि "समाजशास्त्र के प्राथमिक सिद्धान्तों से अनभिज्ञ लोगों को राज्य के सिद्धान्त पढ़ना वैसा ही निरर्थक है, जैसा न्यूटन द्वारा बताये हुए गति के नियमों को न जानने वाले व्यक्ति का ज्योतिष पढ़ना।" इसलिए, एक राजनीतिज्ञ को समाजशास्त्र और एक समाजशास्त्री को राजनीतिशास्त्र का उत्तम ज्ञान होना चाहिए।
राजनीतिशास्त्र और इतिहास (Political Science and History)
राजनीतिशास्त्र इतिहास का ऋणी है:- यद्यपि सीले ने इस सम्बन्ध को बहुत बढ़ा-चढ़ाकर कहा है, फिर भी इसमें यह सच्चाई अवश्य है कि राजनीतिक संस्थाओं के आरम्भ और विकास की जानकारी प्राप्त करने के लिए हमें इतिहास की सहायता लेनी पड़ती है, क्योंकि राजनीति संस्थाओं की जड़ें इतिहास में छुपी रहती है। उदाहरणस्वरूप, यदि हम इंगलैंड की संसद तथा राजतन्त्र के वर्तमान रूप का ज्ञान प्राप्त करना चाहें तो हमें वहाँ के इतिहास का गहरा अध्ययन करना पड़ेगा। जेलिनेक ने कहा है कि राजनीति तथा अन्य प्रकार की संस्थाओं के अध्ययन के लिए ऐतिहासिक अध्ययन का आधार आवश्यक है।
इतिहास राजनीतिशास्त्रका ऋणी है:- जिस तरह राजनीति की निर्भरता इतिहास पर है, उसी तरह इतिहास की भी निर्भरता राजनीति पर है। वास्तव में, वे एक-दूसरे के पूरक हैं। प्रो० सीले ने ठीक ही कहा है कि "राजनीति के उदार प्रभाव से वंचित होकर और राजनीतिशास्त्र से अलग होकर इतिहास केवल कोरा साहित्य रह जाता है।" बर्गेस ने दोनों शास्त्रों का घनिष्ठ सम्बन्ध दिखाते हुए कहा है कि "यदि राजनीतिशास्त्र और इतिहास को एक-दूसरे से बिल्कुल अलग कर दिया जाय तो उनमें से एक मुर्दा नहीं तो कम-से-कम लंगड़ा-लूला अवश्य हो जायेगा और दूसरा आकाश में उड़ने वाले फूल की तरह हो जायेगा। हमारा इतिहास का ज्ञान अधूरा रह जायेगा यदि हम राजनीतिक घटनाओं की उपेक्षा कर दें। उदाहरणस्वरूप, उन्नीसवीं शताब्दी के यूरोप का इतिहास राष्ट्रवाद, साम्राज्यवाद, व्यक्तिवाद लोकतंत्र, समाजवाद तथा साम्यवाद जैसी महान विचारधाराओं के गहरे अध्ययन के बिना अधूरा रहेगा। फ्रांस की 1789 ई0 की राज्य क्रान्ति एक राजनीतिक घटना थी, परन्तु इसने फ्रांस के इतिहास पर एक विशेष प्रभाव डाला । बीसवीं शताब्दी में इटली में फांसिज्म तथा जर्मनी में नात्सीवाद का उदय महान राजनीतिक घटनाएँ हैं। उनका न केवल इटली और जर्मनी के इतिहास पर ही बल्कि विश्व के इतिहास पर गहरा प्रभाव पड़ा, क्योंकि उनके कारण दूसरा विश्वयुद्ध छिड़ गया । इस प्रकार भारत में स्वतन्त्रता-प्राप्ति के लिए क्रान्तिकारियों ने जो राजनीतिक आन्दोलन चलाया उसकी भारतीय इतिहास पर अमिट छाप पड़ी। महात्मा गाँधी के आन्दोलन 1945 ई0 का शिमला कॉन्फ्रेन्स, मन्त्रिमण्डल मिशन योजना, अन्तर्कालीन सरकार की स्थापना तथा 1947 ई0 में भारत का बँटवारा, कश्मीर पर पाकिस्तान का आक्रमण आदि तथ्यों की जानकारी के बिना भारतीय इतिहास महत्त्वहीन हो जायेगा। अतः, हम कह सकते हैं कि "राजनीतिशास्त्र और इतिहास का आपस में गहरा सम्बन्ध है।" यही कारण है कि लॉर्ड एक्टन ने कहा है कि "राजनीति इतिहास की धारा में उसी प्रकार इकट्ठी हो जाती है जैसे नदी की रेत में सोने के कण ।"
Lord Acton |
इतिहास राजनीतिशास्त्र की प्रयोगशाला के रूप में:- इतिहास राजनीतिशास्त्र के लिए एक प्रयोगशाला का काम भी करता है। उदाहरणार्थ, औरंगजेब और अकबर की धार्मिक नीति की तुलना करके राजनीति इस परिणाम पर पहुँचता है कि राज्य को लोगों के धार्मिक विश्वासों में अनुचित हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। इसी कारण आधुनिक भारत में धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना की गयी है। ब्राइस ने दोनों शास्त्रों के सम्बन्धों के बारे में लिखा है, "इतिहास एवं राजनीतिशास्त्र अतीत एवं वर्तमान के मध्यस्थ है। उसने एक से सामग्री ली है और उसका प्रयोग उसे दूसरे से करना है।'
राजनीतिशास्त्र और इतिहास में अन्तर:- यद्यपि राजनीतिशास्त्र और इतिहास के बीच घनिष्ठ संबंध है, फिर भी दोनों में अंतर हैं
1. इतिहास का क्षेत्र बहुत विस्तृत और व्यापाक होता है। इसके अंतर्गत युद्ध, क्रांतियों, आर्थिक परिवर्तनों, धार्मिक और सामाजिक आन्दोलनों का अध्ययन किया जाता है। लेकिन, राजनीतिशास्त्र केवल उन बातों से सम्पर्क रखता है जिनका संबंध राज्य या अन्य राजनीतिक संस्थाओं तथा उन पर प्रत्यक्ष रूप में प्रभाव डालने वाले तथ्यों से है।
2. दोनों शास्त्रों के उद्देश्य में भी भिन्नता है। इतिहास वर्णनात्मक है। वह केवल घटनाओं का वर्णन करता है। इसके विपरीत, राजनीतिशास्त्र काल्पनिक तथा नैतिक है। यह क्या है और क्या होना चाहिए, दोनों पर विचार करता है। इस प्रकार, राजनीतिशास्त्र एक आदर्शात्मक शास्त्र है जबकि इतिहास वर्णनात्मक।
3 अध्ययन:- विधि के दृष्टिकोण से भी दोनों विषयों में अंतर है। इतिहास घटनाओं का वर्णन कर उनका क्रमबद्ध विवरण प्रस्तुत करता है। इसके विपरीत, राजनीतिशास्त्र विचारात्मक तथा पर्यवेक्षणात्मक विधियों से अध्ययन करता है और सामान्यीकरणों के आधार पर निष्कर्ष पर पहुँचता है।
राजनीतिशास्त्र तथा अर्थशास्त्र (Political Science and Econonics)
राजनीतिशास्त्र और अर्थशास्त्र का घनिष्ठ सम्बन्ध जानने से पहले यह जानना आवश्यक है कि दोनों से हमारा क्या अभिप्राय है? राजनीतिशास्त्र वास्तव में राज्य और सरकार का विज्ञान है। जहाँ तक अर्थशास्त्र का सम्बन्ध है हम कह सकते हैं कि यह सम्पत्ति का शास्त्र है। इसका सम्बन्ध उत्पादन वितरण, उपभोग तथा विनिमय से है। हमें यह मानना पड़ेगा कि मनुष्य के आर्थिक और राजनीतिक पहलुओं में बहुत घनिष्ठ सम्बन्ध है। दोनों शास्त्रों का उद्देश्य मनुष्य की भलाई है। सरकार व राज्य के बिना समाज में अशान्ति फैल जायगी। चूँकि अराजकता में कोई आर्थिक व्यवस्था नहीं टिक सकती इसलिए प्राचीन राजनीतिज्ञों ने दोनों शास्त्रों को अभिन्न बताया है। प्राचीन यूनानी लेखकों ने दोनों शास्त्रों को एक माना और उन्होंने अर्थशास्त्र को 'राजनीतिक अर्थव्यवस्था' का नाम दिया, जिसकी परिभाषा करते हुए उन्होंने लिखा है कि "यह राज्य के लिए राजस्व जुटाने की एक कला हैं।" कुछ प्रारम्भिक अर्थशास्त्रियों ने भी अर्थशास्त्र को राजनीतिक अर्थव्यवस्था की एक शाखा माना जाता रहा है और उस समय के कई अर्थशास्त्रियों ने इसमें सम्पत्ति के बारे में नहीं बल्कि सरकार के बारे में कुछ लिखा है।"सीनियर ने अठारहवीं शताब्दी के अर्थशास्त्रियों का अनुसरण करते हुए लिखा है कि "राजनीतिक अर्थव्यवस्था में आचारशास्त्र, सरकार, दीवानी और फौजदारी कानून के सब सिद्धान्तों का अध्ययन शामिल है।"चाणक्य ने राज्य विज्ञान या राजनीतिशास्त्र पर लिखे गये अपने ग्रन्थ का नाम 'अर्थशास्त्र' रखा और उसमें उन्होंने राज्य, सरकार, युद्ध, शान्ति, व्यापार, कृषि इत्यादि का वर्णन किया।
अर्थशास्त्र एक स्वतन्त्र सामाजिक विज्ञान के रूप में:- उन्नीसवीं शताब्दी में एडम स्मिथ ने आर्थिक क्षेत्र में राज्य के हस्तक्षेप या नियम को अनुचित बताया और उसने अर्थशास्त्र के क्षेत्र को राजनीति से अलग किया। बीसवीं शताब्दी, के अर्थशास्त्रियों ने अर्थशास्त्र को राजनीति से अलग सामाजिकशास्त्र सिद्ध करने का यत्न किया। उदाहरणस्वरूप, महान अर्थशास्त्री मार्शल ने कहा है, 'अर्थशास्त्र जीवन के साधारण व्यापार में मनुष्य का अध्ययन है। वह व्यक्तिगत एवं सामाजिक व्यापार के उस भाग का परीक्षण करता है, जिसकी समृद्धि हेतु भौतिक आवश्यकताओं की प्राप्ति तथा उनके प्रयोग के साथ अत्यन्त घनिष्ठ सम्बन्ध है।"
अर्थशास्त्र का राजनीतिशास्त्र पर प्रभाव:- यद्यपि बीसवीं शताब्दी में अर्थशास्त्र को राजनीतिशास्त्र से स्वतन्त्र विज्ञान मान लिया गया, परन्तु इसका यह अर्थ नहीं कि दोनों में कोई सम्बन्ध हीं नहीं है। वास्तव में देखा जाय तो बीसवीं शताब्दी में कल्याणकारी राज्य के उदय ने दोनों शास्त्रों की परस्पर निर्भरता को जितना स्पष्ट किया है, उतना किसी और धारणा ने नहीं किया। आधुनिक राज्य की मुख्य समस्याएँ आर्थिक ही हैं। यदि हम प्राचीन इतिहास का भी अध्ययन करें तो हमें पता चलेगा कि आर्थिक स्थितियों ने किस प्रकार मनुष्य की राजनीतिक दशाओं को प्रभावित किया।
राजनीति का अर्थशास्त्र पर प्रभाव:- जहाँ आर्थिक दशाओं का राजनीति पर प्रभाव पड़ता है, वहाँ सरकार की नीतियों का भी देश की आर्थिक व्यवस्था पर विशेष प्रभाव पड़ता है। सरकार की कर-पद्धति, आयात-निर्यात नीति, बैंकिंग पद्धति टेलीफोन और डाक की सुविधाएँ, परमिट तथा राशन पद्धति, माल को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने की सुविधाएँ, सीमा-शुल्क इत्यादि का भी अर्थव्यवस्था पर विशेष प्रभाव पड़ता है। सरकार का उत्पादन, वितरण, खपत, वित्त इत्यादि पर पूर्ण नियंत्रण रहता है। सरकार अपने उद्योगों को संरक्षण देती है और बाहर के माल पर अधिक सीमा शुल्क लगाती है ताकि अपना माल देश में सस्ता बिके, उसकी खपत बढ़े, देश का धन विदेशों को अधिक न जाय। सरकार का मुद्रा तथा नोट, माप-तौल और लेन-देन पर नियंत्रण रहता है। सरकार को मजदूरों तथा पूंजीपतियों के झगड़ों का निर्णय करना पड़ता है। यदि किसी देश में समाजवादी सरकार है तो उसकी निजी सम्पत्ति और पूँजी की तरफ अलग नीति होगी और यदि पूँजीवादी सरकार है तो उसकी नीति अलग होगी अर्थात् दोनों प्रकार की सरकारों की भिन्न-भिन्न नीतियाँ होंगी। सरकार की राष्ट्रीयकरण की नीति का भी अर्थव्यवस्था पर काफी प्रभाव पड़ता है। भारत सरकार ने 1947 ई0 के बँटवारे के बाद उत्पादन को बढ़ाने के लिए योजनाएँ बनायीं और बहुत ही महत्त्वपूर्ण कदम उठाये। हमारी सरकार ने कृषि की उन्नति के लिए अनेक बाँध बनवाये, नहरें निकाली, ट्यूबवेल लगवाये तथा ऋण दिये, जमींदारी प्रथा को समाप्त किया और सहकारिता को बढ़ावा दिया। औध्योगिक उत्पादन को बढ़ाने के लिए असंख्य कारखाने खोले गये।
दोनों शास्त्रों में अंतर:- यद्यपि राजनीतिशास्त्र तथा अर्थशास्त्र एक-दूसरे पर बहुत अधिक निर्भर हैं, फिर भी वे दोनों पृथक् सामाजिक विज्ञान है। राजनीतिशास्त्र में हम केवल सरकार तथा राज्य का अध्ययन करते हैं और उत्पादन, वितरण, खपत तथा विनिमय का अध्ययन नहीं करते जो कि अर्थशास्त्र के विषय हैं। इसी प्रकार, अर्थशास्त्र में हम सरकार और राज्य का अध्ययन नहीं करते। इसलिए, दोनों के अध्ययन के विषय अलग-अलग हैं।
राजनीतिशास्त्र और नीतिशास्त्र (Political Science and Ethics)
राजनीतिशास्त्र और नीतिशास्त्र में गहरा संबंध है:- राजनीतिशास्त्र का जिस तरह समाजशास्त्र इतिहास तथा अर्थशास्त्र से गहरा सम्बन्ध है उसी तरह इसका नीतिशास्त्र अथवा आचारशास्त्र में भी काफी घनिष्ठ सम्बन्ध है। यह पहले ही बताया जा चुका है कि राजनीतिशास्त्र का विषय सरकार अथवा राज्य है। नीतिशास्त्र से हमारा अभिप्राय उस शास्त्र से है, जिसके द्वारा धर्म-अधर्म, कर्त्तव्य-अकर्त्तव्य, शुभ-अशुभ, सत-असत और पाप-पुण्य में भेद किया जाता है। नीतिशास्त्र मनुष्य के अच्छे और बुरे, उचित तथा अनुचित आचरण का मापदण्ड निर्धारित करता. है। इसके द्वारा हम यह तय करते हैं कि व्यक्ति का कौन-सा कार्य बुरा है और कौन-सा अच्छा। नीतिशास्त्र हमें बुरे कार्यों से बचने और अच्छे मार्ग पर चलने की शिक्षा देता है। तभी नागरिक एक आदर्श नागरिक बन सकता है। राज्य का लक्ष्य भी अधिक-से-अधिक आदर्श नागरिक तैयार करना है। वही देश सबसे अधिक उन्नति कर सकता है, जिसके नागरिक आदर्श जीवन व्यतीत करते हों। अतः नीतिशास्त्र और राजनीतिशास्त्र में गहरा सम्बन्ध है।
यही कारण है कि राजनीतिशास्त्र के कई प्राचीन लेखकों ने राज्य को एक नैतिक संस्था माना, जिसका उद्देश्य मनुष्य का अधिक-से-अधिक कल्याण करना है। प्लेटो तथा अरस्तू राज्य को सर्वोच्च नैतिक संगठन मानते थे, क्योंकि उनके अनुसार, राज्य द्वारा ही मनुष्यों का पूर्ण नैतिक विकास सम्भव है। प्लेटो की प्रसिद्ध पुस्तक 'रिपब्लिक' में राजनीति ही नहीं बल्कि नैतिक दर्शन भी भरा हुआ है। प्लेटो तथा अरस्तू दोनों यह मानते थे कि श्रेष्ठ नागरिक श्रेष्ठ राज्य में ही उत्पन्न हो सकते हैं और घटिया राज्य में निकृष्ट नागरिक ही उत्पन्न होंगे। प्लेटो ने राजनीतिशास्त्र को नीतिशास्त्र की एक शाखा ही माना और कहा है कि "राज्य का सबसे बड़ा उद्देश्य नागरिकों को सदाचारी तथा सच्चरित्र बनाना है।"अरस्तू ने कहा कि “राज्य जीवन को सम्भव बनाने के लिए उत्पन्न हुआ, परन्तु अब यह जीवन को अच्छा बनाने के लिए विद्यमान है।" इसका अर्थ यह हुआ कि राज्य का लक्ष्य मनुष्य के नैतिक जीवन का उत्थान है। इससे स्पष्ट है कि यद्यपि अरस्तू राजनीतिशास्त्र और नीतिशास्त्र को अलग-अलग विज्ञान मानता था, फिर भी दोनों में घनिष्ठ सम्बन्ध मानता था।
हमारे देश में अरस्तू के समकालीन राजनीति के प्रसिद्ध आचार्य चाणक्य थे। यद्यपि उन्होंने दण्डनीति तथा नीतिशास्त्र को अलग-अलग विधाएँ मानी है और शत्रुओं के दमन के लिए अनेक कूटनीतिक उपायों का वर्णन किया है, फिर भी राजा को सदाचारी और प्रजापालक बनने के लिए कहा है। एक स्थान पर उन्होंने स्पष्ट कहा है कि "राजा को अपनी प्रजा की खुशी में अपनी खुशी समझनी चाहिए और उसके कल्याण में अपना कल्याण समझना चाहिए। जो बात राजा के मन को अच्छी लगे उसे वह अच्छा नहीं समझे बल्कि जो बात उसकी जनता को अच्छी लगे, उसी को वह अच्छा समझेगा।
पश्चिम में सेन्ट आगस्टाइन तथा अन्य पादरियों ने मानव-जीवन को लौकिक तथा पारलौकिक दो भागों में बाँटा है। यही विभाजन बाद में राजनीतिशास्त्र तथा नीतिशास्त्र में गहरा सम्बन्ध मौनते हैं। हमारे देश में महात्मा गाँधी दोनों को अभिन्न मानते थे। वे कहते थे कि धर्मरहित राजनीति व्यर्थ है और इस बात पर बल देते थे कि राजनीति का संचालन सत्य और अहिंसा के अनुसार होना चाहिए और उसमें स्वार्थ, छल तथा कपट का मिलावट नहीं होना चाहिए। प्रो० आइवर ब्राऊन ने तो यहाँ तक कहा है कि "राजनीति नैतिकता का ही विकसित रूप है।"
राजनीतिशास्त्र और नीतिशास्त्र में अंतर:- अत्यधिक घनिष्ठता के बावजूद दोनों शास्त्रों में निम्नांकित अंतर हैं
1. राजनीतिशास्त्र मानव जीवन के राजनीतिक पक्ष का अध्ययन करता है जबकि नीतिशास्त्र उसके आध्यात्मिक और नैतिक पक्ष का।
2. राजनीतिशास्त्र एक वर्णनात्मक तथा व्यावहारिक विज्ञान है जबकि नीतिशास्त्र आदर्शात्मक और सैद्धांतिका
3. राजनीतिशास्त्र का संबंध सरकार से है जो मूर्त और प्रत्यक्ष है जबकि आचारशास्त्र का संबंध केवल निराकार, अमूर्त और अप्रत्यक्ष बातों से है।
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