अरबों की सिन्ध-विजय के कारणों, स्वरूपों और परिणामों की विवेचना
अरबों के आक्रमण के कारण व्यापारिक दृष्टिकोण में परिवर्तन : भारत का अरब देशों से काफी प्राचीन काल से व्यापारिक सम्बन्ध बनाए हुए थे। अनेक जहाज अक्सर इन तटों पर आया करते थे, परन्तु इस्लाम धर्म के उदय और प्रचार ने इन व्यापारियों का दृष्टिकोण ही बदल दिया। वे भी अब इस्लाम धर्म के प्रचार में दिलचस्पी लेने लगे। 636 ई० में अरबों ने व्यापारिक बन्दरगाहों पर अधिकार करने के उद्देश्य से आक्रमण प्रारम्भ कर दिए। उस समय खलीफा उमर का राज्य था। सबसे पहला आक्रमण बम्बई के निकट हुआ। इसका उद्देश्य बन्दरगाहों को लूटना था, परन्तु यह आक्रमण विफल कर दिया गया। थाना में पराजित होकर अरबों ने देवल के प्रसिद्ध बन्दरगाह को लूटने की योजना बनायी, परन्तु यहाँ भी उन्हें असफलता ही हाथ लगी।
तत्पश्चात् वे समुद्री मार्ग छोड़कर स्थल मार्ग से भारत की तरफ बढ़े। 643 ई० के आस-पास उन्होंने सिस्तान और मकरान पर अधिकार कर लिया। इस विजय ने भारत का द्वार अरबों के लिए खोल दिया। इस बीच अरबों ने सम्पूर्ण मिस्र, सीरिया, कार्थेज तथा अफ्रीका पर अपना कब्जा कर लिया था। इन विजयों से प्रोत्साहित होकर वे सिन्ध की तरफ बढ़े जिस पर उनकी दृष्टि बहुत पहले से ही लगी हुई थी।
तत्पश्चात् वे समुद्री मार्ग छोड़कर स्थल मार्ग से भारत की तरफ बढ़े। 643 ई० के आस-पास उन्होंने सिस्तान और मकरान पर अधिकार कर लिया। इस विजय ने भारत का द्वार अरबों के लिए खोल दिया। इस बीच अरबों ने सम्पूर्ण मिस्र, सीरिया, कार्थेज तथा अफ्रीका पर अपना कब्जा कर लिया था। इन विजयों से प्रोत्साहित होकर वे सिन्ध की तरफ बढ़े जिस पर उनकी दृष्टि बहुत पहले से ही लगी हुई थी।
धार्मिक कारण : अरबों के सिन्ध पर आक्रमण का एक प्रमुख कारण भारत में इस्लाम धर्म की स्थापना एवं प्रचार करना था। यूरोप और अफ्रीका को इस्लामी झंडे के नीचे लाने के पश्चात् इस्लामी विजेता भारत में इसका प्रचार करना चाहते थे। इसके लिए किसी जगह पर उनके केन्द्र का होना आवश्यक था। सिन्ध चूँकि सीमावर्ती प्रदेश था, इसलिए वहाँ पर आसानी से अधिकार कर इस उद्देश्य की पूर्ति की जा सकती थी। खलीफा वाजिद के समय में सिन्ध के विजेता मुहम्मद- -बिन-कासिम और उसके स्वामी इराक के शासक हज्जात के मध्य जो पत्र व्यवहार हुए उससे स्पष्ट तौर पर पता चलता है कि सिन्ध पर आक्रमण करने का एक मुख्य कारण वहाँ मूर्तिपूजा का अन्त कर इस्लाम धर्म की महानता को स्थापित करना था।
आर्थिक कारण : कुंछ आर्थिक कारणों से भी. अरब विजेता सिन्ध पर आक्रमण करने को उत्सुक थे। काफी दिनों से भारत से व्यापारिक सम्बन्ध बनाए रखने के कारण वे भारत की आर्थिक सम्पन्नता से पूरी तरह वाकिफ हो चुके थे। यहाँ के वैभव को देखकर उनकी ललचायी आँखें हमेशा इस पर लगी रहती थीं। यहाँ के मंदिरों में अपार सम्पत्ति थी जिन्हें लूटकर वे धन भी प्राप्त कर सकते थे और उनकी धार्मिक भावना की पुष्टि भी हो सकती थी। इन्हीं कारणों ने उन्हें सिन्ध पर आक्रमण करने को प्रेरित किया।
तात्कालिक कारण : इन सभी उद्देश्यों की पूर्ति हेतु एक छोटी-सी घटना का बहाना बनाकर अरबों ने सिन्ध पर आक्रमण कर दिया। आक्रमण का तात्कालिक कारण यह था कि लंका का राजा (जिसने संभवतः इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया था) एक जहाज में लंका में मृत फारसी व्यक्तियों के परिवारों तथा उनकी सम्पत्ति को इराक के गवर्नर हज्जाज के पास भेज रहा था। इस जहाज को समुद्री डाकुओं ने देवल के प्रसिद्ध बन्दरगाह के समीप ल लिया था। इस घटना की खबर जब गवर्नर हज्जाज को मिली तो उसने सिन्ध के राजा दाहिर से क्षतिपूर्ति की मांग की। इस पर दाहिर ने हज्जाज की आज्ञा को ठुकरा दिया एवं यह तर्क पेश किया कि चूँकि समुद्री डाकुओं पर उसका कोई नियंत्रण नहीं है, अत: वह हर्जाना नहीं देगा। दाहिर के इस जवाब से हज्जाज को क्रोध ने पागल बना दिया। उसने दाहिर को सबक सिखाने की सोची। खलीफा प्राप्त कर उसने देवल पर दो बार अपने योद्धाओं को भेजा। दोनों ही बार अरब आक्रमणकारी पराजित कर दिये गये। एक युद्ध में तो उसका सेनापति भी मारा गया। इन असफलताओं ने जलती अग्नि में घी का काम किया। तीसरी बार हज्जाज ने अपने दामाद मुहम्मद बिन कासिम के नेतृत्व में एक विशाल एवं सुसंगठित सेना सिन्ध पर आक्रमण करने के लिए भेजी।
आक्रमण का स्वरूप : मुहम्मद बिन कासिम यद्यपि कम आयु का ही था, फिर भी वह वीर एवं कुशल सेनापति था। वह धार्मिक भावना से ओत-प्रोत था। वह करीब छह हजार घुड़सवार, तीन हजार ऊंट की टुकड़ी तथा तोपखाना के साथ भारत अभियान पर निकला। शीराज के रास्ते मकराना होते हुए बीच की आबादियों एवं नगरों में अपने आतंक का सिक्का जमाता हुआ वह 711-12 में देवल पहुंचा।
सिन्ध के राजा दाहिर ने देवल की सुरक्षा का समुचित प्रबंध नहीं किया था, फलतः राजपूत योद्धाओं के अथक पराक्रम के बाबजूद अरबों को देवल पर अधिकार कर लिया। मुहम्मद में इस्लाम धर्म नहीं स्वीकार करने वालों का कत्ल करवा दिया, स्त्रियों एवं बच्चों को गुलाम बन दिया गया। कासिम ने लूट के माल का चौथा हिस्सा एवं 75 सुन्दर युवतियों को हज्जाज की सेवा में भेज दिया।
देवल से मुहम्मद बिन. कासिम निरून के प्रसिद्ध दुर्ग की तरफ एवं आसानी से उसे अपने अधिकार में कर लिया। उसने सेहवान पर भी विजय प्राप्त कर ली। सीसम के जाटों ने भी उसर्क अधीनता स्वीकार कर ली। सीसम से पुनः निरून की ओर लौटा जहाँ सिन्धु नदी की मुख्य धार मेहरान को पार करने के लिए उसे काफी दिनों तक रुकना पड़ा। कहा जाता है कि कुछ बौद्ध भिक्षुओं और स्थानीय लोगों के सहयोग से वह मुख्य जलधारा को पार कर सका।
अब तक दाहिर ने मुहम्मद को मार्ग में ही रोककर उसकी प्रगति का कोई भी उपाय नही किया था। मुहम्मद के आगमन की खबर सुन अब वह ब्राह्मणवाद के किले से निकलकर राब या राजेर की तरफ बढ़ा। वहां पर मुहम्मद एवं दाहर के मध्य पहली मुठभेड़ हुई। 20 जून, 712 को दोनों के बीच भीषण युद्ध हुआ। दाहिर की सेना काफी विशाल थी। उसमें करीब पचास हजा सैनिक और हाथी थे। दाहिर ने आक्रमणकारियों का मुकाबला बहुत बहादुरी से किया, परन्तु वह युद्धस्थल पर ही मारा गया। उसकी मृत्यु के बाद उसकी विधवा रानी ने किले की रक्षा का प्रयल किया, परन्तु उसे भी पराजित होना पड़ा। उसने जौहर व्रत का पालन कर लिया। किले पर मुहम्मद का अधिकार हो गया।
इसी बीच दाहिर की पराजय देखकर उसका पुत्र थोड़ी-सी सेना के साथ भाग कर ब्राह्मणावाद चला गया था। उसने कासिम का मुकाबला वीरता से किया, परन्तु उसे (जय सिंह) पराजित होकभागना पड़ा। कहा जाता है कि उसके मंत्री ने उससे विश्वासघात कर अरबों की सहायता की ब्राह्मणावाद पर कासिम का अधिकार हो गया। मुहम्मद ने वहाँ की सारी सम्पत्ति को लूट लिय तथा जय सिंह की पत्नी एवं उसकी दो पुत्रियों को अपने कब्जे में कर लिया। बाद में स्वयं विध वा रानी से विवाह कर लिया एवं राजकुमारियों को हज्जाज के लिए बतौर नजराना भेज दिया।
ब्राह्मणावाद से कासिम आलोर पहुंचा जहाँ उसने दाहिर के दूसरे पुत्र को परास्त किया 713 ई० में उसने मुल्तान पर भी विजय प्राप्त कर ली। यहाँ भी देशद्रोहियों ने कासिम की सहायत की। यहाँ कासिम की अंतिम विजय थी। उसने कन्नौज पर भी आक्रमण करने की सोची थी, इसी बीच खलीफा वालिद और हज्जाज की मृत्यु हो चुकी थी। सुलेमान (नए खलीफा) ने उस परन्त वापस बुलवा कर उसकी हत्या करवा दी।
सिन्ध-विजय के परिणाम : सिन्ध-विजय के परिणामों का विभिन्न इतिहासकारों ने विभिन्न दृष्टिकोणों से देखने का प्रयत्न किया है। विभिन्न विद्वानों का कहना है कि अरब आक्रमण का प्रभाव सिर्फ सिन्ध पर ही अस्थायी रूप से पड़ा। बाकी भारत उसके प्रभाव से अछूता बचा रह गया। इसके विपरीत कर्नल टॉड का कहना है कि अरबों के आक्रमण से समस्त उत्तरी भारत दहल गया था। ये दोनों ही विचार अतिशयोक्तिपूर्ण हैं। अरब आक्रमण के दूरगामी परिणाम इतने तुच्छ नहीं थे जितना कहा जाता है और न ही इसके तात्कालिक परिणाम इतने भयंकर हुए जैसा कि टॉड ने सिद्ध करने की कोशिश की है। वास्तव में भारत पर अरब आक्रमण का वैसा ही प्रभाव पड़ा था जैसा ईसा के पूर्व की शताब्दियों में यूनानी आक्रमण का।
राजनीतिक परिणाम : राजनीतिक दृष्टिकोण से अरब आक्रमण का कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ा। यह सच है कि सिन्ध पर अरबों का अधिकार हो गया, परन्तु इस घटना को किसी भी अन्य समकालीन राजवंश ने उचित महत्त्व नहीं दिया। अरब भी सिन्ध के आगे नहीं बढ़ सके। उन्हें सिन्ध प्रदेश में ही स्थिर हो जाना पड़ा। अरबों ने हिन्दुओं की सहायता से उस प्रदेश का शासन भार संभाला। कर वसूलने की जिम्मेदारी मुख्यतः ब्राह्मणों को सौंपी गयी। न्याय-व्यवस्था काजियों के हाथ में थी। कृषि कर्म भारतीय करते थे। भारतीयों को जागीरें भी दी गयी थीं।
धार्मिक परिणाम : अरबों की सिन्ध-विजय का एक महत्त्वपूर्ण धार्मिक परिणाम था-भारत में इस्लाम धर्म की स्थापना। प्रारंभ में अरबों ने इस्लाम धर्म ग्रहण नहीं करने वालों पर अत्याचार किये, उनकी हत्याएँ भी की तथा उन्हें जबर्दस्ती इस्लाम धर्म स्वीकार करने को बाध्य किया, परन्तु बाद में वे इस संदर्भ में उदार बन गये। उन्होंने धार्मिक सहिष्णुता का परिचय देना प्रारंभ किया। हिन्दुओं को पूजा पाठ करने, मंदिर बनवाने आदि का अधिकार दिया गया। मुल्तान के प्रसिद्ध सूर्य मंदिर को अरबों ने नष्ट नहीं किया। वे सिर्फ इस्लाम धर्म ग्रहण नहीं करने वालों से जजिया कर वसूलते थे। उन्होंने समान रूप से फकीरों, साधु संन्यासियों को दान भी दिये।
सामाजिक परिणाम : सिन्ध में रहते-रहते अरबों ने भारतीयों से सामाजिक सम्बन्ध भी स्थापित किये। उन्होंने भारतीयों से वैवाहिक सम्बन्ध भी कायम किए तथा अनेक उपनिवेशों की स्थापना की। इस प्रकार दोनों देशों के निवासियों के बीच सामाजिक सम्पर्क बढ़े।
आर्थिक परिणाम : सिन्ध पर अरब-आक्रमण के चलते सिन्ध की आर्थिक दशा में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए। अरबों ने कृषि एवं सिंचाई की उचित व्यवस्था की। व्यापारिक दृष्टिकोण से सिन्ध का महत्त्व पहले की अपेक्षा ज्यादा बढ़ गया। स्थल एवं जल मार्ग दोनों से ही सिन्ध अरब देशों के साथ व्यापार का प्रमुख केन्द्र बन गया। श्रीलंका, मालाबार एवं अन्य दक्षिणी प्रदेश भी सिन्ध के माध्यम से ही विदेशों से व्यापार करने लगे। इस व्यापार ने आर्थिक प्रगति में महत्त्वपूर्ण योगदान किया।
सांस्कृतिक परिणाम : अरब विजय का सबसे महत्त्वपूर्ण सांस्कृतिक परिणाम निकला। यद्यपि इससे अरब ही लाभान्वित हुए एवं उन्होंने भारतीयों से बहुत कुछ ग्रहण किया। वे भारतीय कला, साहित्य एवं दर्शन आदि से प्रभावित हुए। हैवेल महोदय का मत है कि "यह भारत था यूनान नहीं जिसने इस्लाम को उसकी युवावस्था में शिक्षा दी, उसके दर्शन और रहस्यवादी विचारों का निर्माण किया तथा साहित्य, कला एवं स्थापत्य में उसकी विशिष्ट अभिव्यक्ति को अनुप्राणित किया।" अरब विद्वान यहाँ पर ज्ञान की खोज में आये। यहाँ से अनेक ग्रन्थ अपने साथ ले गए जिसका वहाँ अरबी में अनुवाद हुआ। खलीफा अलमन्सूर के समय में संस्कृत के प्रसिद्ध ग्रंथ ब्रह्म-सिद्धांत एवं खण्ड-खाधक का अरबी अनुवाद हुआ। अरबों ने चिकित्साशास्त्र, भूगोल, भूगर्भशास्त्र, रसायन, गणित आदि विधाएँ भारत से ही सीखीं। शून्य (Zero) का ज्ञान भी उन्हें यहीं से प्राप्त हुआ जिसका बाद में यूरोप में प्रचार हुआ। भारतीय संगीतज्ञ, चित्रकार, कलाकार एवं कारीगर तथा वैद्य बगदाद गए और वहाँ जाकर भारतीय ज्ञान-विज्ञान से अरबों को परिचय करवाया।
इस प्रकार, यद्यपि राजनैतिक दृष्टिकोण से अरबों की सिन्ध-विजय का बहुत महत्त्व नहीं था, फिर भी सांस्कृतिक दृष्टिकोण से दोनों देशों में घनिष्ठ सम्बन्ध स्थापित हुए।
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