मौर्यों के पतन के क्या कारण थे? क्या इसके लिए अशोक जिम्मेदार था?

मौर्यों के पतन के क्या कारण थे? क्या इसके लिए अशोक जिम्मेदार था? और मौर्य साम्राज्य के पतन के कारणों की आलोचनात्मक समीक्षा।


अशोक की मृत्यु के बाद मौर्य साम्राज्य का पतन आरंभ हो गया। लगभग 50 वर्षों के अन्दर मौर्य वंश के अंतिम शासक वृहद्रथ को मारकर पुष्यमित्र शुंग ने शुंग वंश की नींव डाली। इस तरह मौर्यों के शासनकाल का अन्त हुआ। मौर्य साम्राज्य के पतन के लिए कई बातें जिम्मेदार थीं, जिनका वर्णन नीचे किया जा रहा है।

1. ब्राह्मणों की प्रतिक्रिया : विद्वानों के एक वर्ग के अनुसार अशोक की धार्मिक नीति के खिलाफ जो ब्राह्मण प्रतिक्रिया हुई वही मौर्य साम्राज्य के पतन के लिए जिम्मेदार थी। डॉ० हर प्रसाद शास्त्री के अनुसार, अशोक के द्वारा बौद्ध धर्म को संरक्षण देने, संस्कारों तथा बलि प्रथा के विरोध, ब्राह्मणों के अपमान तथा शूद्र मौर्यों (जैसा कि ब्राह्मण उन्हें मानते थे) के द्वारा ब्राह्मण विरोधी कानूनों के निर्माण के फलस्वरूप ब्राह्मणों में प्रतिक्रिया हुई। इसका प्रकाशन पुष्यमित्र के विद्रोह के रूप में हुआ, जिसके फलस्वरूप मौर्य साम्राज्य का पतन हुआ। लेकिन अधिकांश इतिहासकार इस विचार से सहमत नहीं हैं। उनके अनुसार इस बात का कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं मिलता है कि अशोक ने ब्राह्मणों के साथ अच्छा बर्ताव नहीं किया तथा उनलोगों ने मिलकर मौर्यों के खिलाफ अभियान चलाया। पुष्यमित्र प्रधान सेनापति के पद पर था और उसने इसी का लाभ उठाया। यह सच है कि सहिष्णुतापूर्ण नीति का अनुसरण करते हुए भी अशोक पशुबलि तथा धार्मिक संस्कारों का विरोधी था। इससे ब्राह्मणों को काफी अधिक क्षति हुई थी, चूँकि यज्ञ और धार्मिक संस्कारों के सहारे ही ब्राह्मणों को जीविका हासिल होती थी। अतः ब्राह्मणों द्वारा मौर्यों के विरोध की आंशिक सत्यता को नकारा नहीं जा सकता। फिर इस संभावना की पुष्टि मौर्य साम्राज्य की कब्र पर पनपने वाले शुंग, कण्व, सातवाहन आदि ब्राह्मण शासित राज्यों से भी होती है। डॉ0 रामशरण शर्मा ने इस मत की पुष्टि की है।

2. अशोक की अहिंसा नीति : इतिहासकारों के एक दूसरे वर्ग के द्वारा अशोक की अहिंसा नीति को साम्राज्य के पतन के लिए जिम्मेदार माना गया है। अशोक की इस नीति के फलस्वरूप सैनिकों में सामरिक भावना तथा लड़ाई की क्षमता कम हो गयी। वे ग्रीक आक्रमणकारियों को रोकने तथा प्रांतीय विद्रोहों को दबाने में अक्षम रहे। डॉ० हेमचन्द्र राय चौधरी ने इस विचार का समर्थन किया है। उनके अनुसार अहिंसा की नीति के पालन से साम्राज्य सैनिक रूप में दुर्बल हो गया और पतन की ओर उन्मुख हुआ। लेकिन इस विचार का भी खंडन अन्य इतिहासकारों ने किया है तथा कहा है कि अहिंसा की नीति के अनुसरण ने मौर्य सेना की भावना को प्रभावित किया, इस बात को माना जा सकता है लेकिन इसका उल्लेख नहीं मिलता कि अशोक ने अपने सैनिकों की संख्या में कमी की थी। अत: साम्राज्य के पतन के प्रमुख कारण के रूप में इसे भी स्वीकार नहीं किया

जा सकता।

3. आर्थिक संकट : डॉ० कौशाम्बी तथा डॉ० शर्मा ने आर्थिक संकट को साम्राज्य के पतन के लिए जिम्मेदार बतलाया है। विशाल मौर्य साम्राज्य को बनाये रखने और इसके शासन को सुचारु रूप से चलाने के लिए एक बड़ी सेना और नौकरशाही मौजूद थी। इसके ऊपर काफी खर्च आता था। जनता पर विभिन्न प्रकार के कर लगाने के बावजूद इस विशाल रूप को बनाये रखना कठिन था। इसके अलावा, अशोक ने बौद्ध भिक्षुओं को दान देकर अपना खजाना खाली कर दिया था। देश में आर्थिक दिवालियापन की स्थिति उत्पन्न हो गयी थी। इसकी पुष्टि घटिया किस्म के सिक्कों के प्रचलन से होती है। डॉ० रोमिला थापर ने इस मत का खंडन किया है तथा कहा है कि इस काल में राजा और प्रजा दोनों खुशहाल थे। हस्तिनापुर और शिशुपाल गढ़ से खुदाई में प्राप्त अवशेष भी एक विकासमान मौर्य अर्थव्यवस्था की ओर इशारा करते हैं।

4. प्रांतों का अत्याचारी शासन : इसके अलावा प्रांतों में अत्याचारी शासन को भी साम्राज्य के पतन के लिए जिम्मेदार माना गया है। बिंदुसार के काल में तक्षशिला के नागरिकों ने विद्रोह कर दिया था। जब अशोक राजा बना तो पुनः यही बात दुहरायी गयी। अशोक ने नगर व्यावहारिकों को जनता को अकारण कष्ट नहीं देने की हिदायत दी थी। उसने इस समस्या को खत्म करने के लिए वैशाली, तक्षशिला तथा उज्जैन में अफसरों की बदली की प्रथा चलायी। उसने 256 रातें यात्रा में बितायीं जिसमें संभवत: उसने प्रशासनिक काम किया था। लेकिन उसके प्रयासों के बावजूद दूरवर्ती प्रांतों में अत्याचार होते रहे तथा तक्षशिला ने मौर्य साम्राज्य के जुए को अशोक के तुरंत बाद उतार फेंका। प्रांतों के विद्रोहों से मौर्य साम्राज्य को काफी धक्का पहुंचा।

5. बहिर्वर्ती प्रदेशों में नये भौतिक ज्ञान का प्रसार : मगध साम्राज्य के विस्तार में लोहे ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी थी। लोहे का ज्ञान जब तक मगध तक सीमित रहा सब कुछ ठीक-ठाक चला। लेकिन जब अन्य क्षेत्रों में मगध का विस्तार हुआ तो इसके फलस्वरूप दक्कन और कलिंग के लोगों को भी इन भौतिक तत्त्वों की जानकारी हुई। इससे गंगा की घाटी जो मौर्य साम्राज्य का मर्म स्थल था, अपनी श्रेष्ठता खो बैठी। लोहे के औजारों और हथियारों को बाह्य प्रदेशों में प्रयोग के साथ ही मौर्य साम्राज्य का पतना शुरू हो गया।

6. पश्चिमोत्तर सीमा की उपेक्षा : अशोक देश और विदेशों में प्रचार में इतना उलझा रहा कि पश्चिमोत्तर सीमा की सुरक्षा पर ध्यान नहीं दे सका। तीसरी सदी ई० पूर्व में मध्य एशिया में हो रही कबीलाई गतिविधियों को ध्यान में रखते हुए पश्चिमोत्तर सीमा की सुरक्षा पर ध्यान देना आवश्यक था। स्कीथियन लोग जो घोड़े का प्रयोग करते थे, भारत और चीन के व्यवस्थित साम्राज्य के लिए खतरा बन गये थे। चीन के शासक शी ह्वागटी ने चीन की विशाल दीवार का निर्माण कर अपने साम्राज्य की सुरक्षा की व्यवस्था कर ली थी। लेकिन अशोक ने ऐसा कोई उपाय नहीं किया। स्वाभाविक रूप से जब स्कीथियनों ने चीन की तरफ विस्तार की संभावना नहीं देख भारत की ओर कदम बढ़ाया तो पार्थियन, शक और ग्रीक भी भारत की ओर बढ़े। ग्रीकों ने बैक्ट्रिया में साम्राज्य का निर्माण किया। यहाँ से ग्रीकों ने भारत पर आक्रमण किये जो मौर्य साम्राज्य के लिए घातक सिद्ध हुए। 

7.नौकरशाही और राष्ट्रीय भावना की कमी : डॉ० रोमिला थापर ने एक अलग ही विचार प्रस्तुत किया है। उनके अनुसार अत्यधिक केन्द्रित नौकरशाही तथा एक राष्ट्र के आदर्श की कमी के कारण मौर्य साम्राज्य का पतन हुआ। सैनिक अकर्मण्यता, ब्राह्मण प्रतिक्रिया तथा आर्थिक संकटउनकी नजर में साम्राज्य के पतन का संतोषपूर्ण कारण प्रस्तुत नहीं करते। थापर के अनुसार पतन के कारण मौलिक थे और मौर्यकालीन जीवन के विस्तृत आधार से संबंधित थे। उनका कहना है कि मौर्यों की सफलता नौकरशाही की योग्यता और भक्ति पर निर्भर करती थी। लेकिन मौर्य लोग योग्य और भक्त नौकरशाही को कायम रखने का कोई उपाय नहीं कर सके। उस समय प्रतिनिधि सभाओं का अभाव था तथा कार्यपालिका और न्यायपालिका को अलग करने का प्रयास नहीं किया गया। राज्य और राजा में कोई अन्तर नहीं था तथा सब कुछ राजा की योग्यता पर ही निर्भर करता था। अयोग्य शासकों के समय यह व्यवस्था असफल हो गयी। इसके अलावा प्रजा के बीच आर्थिक और सांस्कृतिक असमानताएँ थीं जो एक राष्ट्र के आदर्श के लिए घातक थी। इस तरह थापर ने राष्ट्रीय भावना की कमी और नौकरशाही पर आधारित अत्यधिक केन्द्रीय व्यवस्था को साम्राज्य के पतन के लिए जिम्मेदार माना है। ऐतिहासिक विश्लेषण के दृष्टिकोण से थापर के विचार सही जान पड़ते हैं क्योंकि वे आधुनिक युग की भावनाओं और परिस्थितियों के प्रति सजग हैं। फिर भी हमें इस बात का ख्याल रखना होगा कि राष्ट्रीय भावना एक आधुनिक विचार है और इस युग के लोगों से इसकी अपेक्षा करना उचित नहीं जान पड़ता।

8. अशोक का उत्तरदायित्व : कुछ इतिहासकार अशोक को मौर्य साम्राज्य के विध्वंस के लिए उत्तरदायी मानते हैं। इनके अनुसार अशोक ने साम्राज्य विस्तार की नीति छोड़ दी। इसका असर सैनिक क्षमता पर पड़ा और सैनिकों की शक्ति काफी घट गयी। उसके द्वारा बौद्धों का पक्ष लिया गया जिससे ब्राह्मणों में प्रतिक्रिया हुई जिसका शिकार मौर्य साम्राज्य को होना पड़ा। उसने धर्म प्रचार में ज्यादा समय देने के कारण शासन कार्य पर उतना ध्यान नहीं दिया। राज्यों को उसने पूरा अधिकार दे दिया जो अवसर देखकर स्वतंत्र हो गये। अशोक ने दान देकर ख़जाना खाली कर दिया तथा वित्तीय संकट ने साम्राज्य को पतन के कगार पर पहुँचा दिया। उसने अपने पौत्रों को नवीन विजय करने से मना किया तथा उन्हें शासन कला की ट्रेनिंग देकर योग्य नहीं बनाया। जब इन आरोपों पर विचार करते हैं तो ये सभी तर्कहीन नजर आते हैं। अशोक के अभिलेखों में उपर्युक्त तर्कों को पुष्ट करनेवाले प्रमाण बिल्कुल नहीं मिलते हैं। आश्चर्य इस बात पर होता है कि कल्पना के आधार पर अशोक के उत्तरदायित्व का विशाल महल खड़ा कर लिया गया है।

इन आरोपों का खंडन इतिहासकारों ने किया है और इन्हें झूठा माना है। यह सच है कि कलिंग युद्ध के बाद अशोक ने युद्ध को तिलांजलि दे दी लेकिन उसने कलिंग या अन्य प्रांतों को स्वतंत्र नहीं किया। वास्तविकता यह थी कि अशोक नरसंहार से ऊब चुका था और उसने हिंसा की नीति की जगह धम्म विजय की नीति शुरू की थी। जहाँ तक अहिंसा की नीति की वजह से सैनिक अकर्मण्यता का प्रश्न है वह भी सच नहीं जान पड़ता। मौर्य शासकों ने सैनिकों को कुशल बनाये रखने में कोई कसर नहीं रखी थी। अंतिम मौर्य सम्राट का सैन्य निरीक्षण के दौरान मारा जाना इस बात की पुष्टि करता है। फिर यह भी नहीं माना जा सकता है कि अशोक ने ब्राह्मण विरोधी नीति अपनायी थी। उसने धर्म महामात्रों की नियुक्ति इस उद्देश्य से की थी कि वे सभी धर्मावलंबियों को उनके धर्म पालन में मदद करें। यह उसकी धर्म निरपेक्षता का प्रमाण है। राजुकों को न्याय के क्षेत्र में स्वतंत्रता प्रदान करना उचित ही था। पुनः दान भी लोकहितकारी राज्य की परंपरा के अनुकूल था। उसने अपने पौत्रों को एक विशाल साम्राज्य सौंपा था, वैसी स्थिति में नवीन विजय से उसने पौत्रों को रोककर व्यावहारिकता का ही परिचय दिया था। इस तरह हम कह सकते हैं कि अशोक मौर्य साम्राज्य के पतन के लिए जिम्मेदार नहीं था। यदि वह इसके लिए जिम्मेदार था, तो इसका

प्रमाण हमें उसके ही राजत्व काल में उपलब्ध होना चाहिए, बहुत पीछे नहीं। बाद में होनेवाली घटनाओं के लिए उसे जिम्मेदार नहीं माना जा सकता। भारतीय इतिहास में ऐसे बहुत से राजा हुए हैं जो अपने वंश के साम्राज्य के पतन के कारण माने गये। उदाहरणस्वरूप मुहम्मद बिन तुगलक, फिरोज तुगलक और औरंगजेब को ले सकते हैं। इनके काल के इतिहास को देखने पर पता चलता है कि इनके समय में ही साम्राज्य का विघटन शुरू हो गया था, विद्रोह होने लगे थे और स्वतंत्र राज्य कायम होने लगे थे। लेकिन ऐसी कोई बात अशोक के काल में हमें देखने को नहीं मिलती है।

उपसंहार- इस संदर्भ में डॉ० आर० के० मुकर्जी ने बहुत ही व्यावहारिक विचार दिये हैं। उन्होंने कहा है कि मौर्य साम्राज्य के पहले भी और बाद में भी भारत में कई साम्राज्यों का पतन हुआ। मौर्य साम्राज्य भी इसका अपवाद नहीं था। मुकर्जी के अनुसार कमजोर उत्तराधिकारी, स्थानीय स्वतंत्रता की भावना (जिसके कारण प्रांतीय गवर्नरों के विद्रोह हुए), आवागमन के साधनों का अभाव, स्थानीय शासकों के अत्याचार, राजमहल के कुचक्र तथा अधिकारियों के विश्वासघात भारतीय साम्राज्यों के । पतन के कुछ सामान्य कारण रहे हैं। इसी का एक उदाहरण मौर्य साम्राज्य भी रहा है। डॉ० रोमिला थापर ने भी कुणाल और दशरथ के बीच साम्राज्य को विभाजन, राज्य को हासिल करने की राजकुमारों की महत्त्वाकांक्षा तथा प्रांतीय गवर्नरों के विद्रोह को ऐसे तत्त्व के रूप में स्वीकार किया है जिसने मौर्य साम्राज्य के पतन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी। अन्त में हम कह सकते हैं, कि मौर्य साम्राज्य के पतन में विभिन्न कारकों ने भूमिका निभायी, अशोक अगर इसके लिए जिम्मेवार था भी तो आशिक रूप से।

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